शनिवार, 25 जुलाई 2009

बहन जी को गुस्सा क्यों आता है ?

बहन जी को गुस्सा क्यों आता है?
अमलेन्दु उपाध्याय

उत्तर प्रदेश में ‘बलात्कार राजनीति’ एक नए मोड़ पर आ गई है। मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी की विवादित टिप्पणी के बाद प्रदेश में जो हुआ उसका समर्थन कोई बड़े से बड़ा दलित समर्थक भी नहीं कर सकता। सबसे बड़ा तमाशा यह है कि न तो रीता जोशी दलित हैं और न रीता जोशी का घर फूंकने वाले बसपा विधायक जितेन्द्र सिंह बबलू और इंतिजार आब्दी दलित हैं। ऐसा भी नहीं है कि मायावती के रीता जोशी के खिलाफ सख्त कदम उठा लेने से दलितों की अस्मिता की रक्षा हो गई है। न रीता के बयान के बाद प्रदेश में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार रुक जाएंगे। लिहाजा बलात्कार जारी रहने पर मायावती भी पीड़ित महिलाओं की नुमाइश कराकर उन्हें पच्चीस हजार रुपये देकर अपने वोट पक्के करने का काम जारी रखेंगी। कायदे की बात तो यह है कि दलितों के साथ बलात्कार जारी रहने में ही कांग्रेस और बसपा दोनों का फायदा है। इसलिए यह बलात्कार भी जारी रहेंगे और इन बलात्कार पर राजनीति भी।
अगर देखा जाए तो रीता जोशी का बयान बेहद भद्दा कहा जा सकता है, लेकिन सिर्फ उनके बयान की निन्दा करके और उनका घर फुंकवाकर मायावती क्या अपनी करतूतों का बचाव कर पाएंगी? विगत दो वर्ष में प्रदेश रसातल में पहुंच चुका है। सारे माफिया, बड़े अपराधी और चोर उचक्के बहन जी के कारवां की शोभा बढ़ा रहे हैं। बहन जी भी पूरी तल्लीनता से अपनी और अपने आराध्य कांशीराम की पत्थर की मूर्तियां लगवाने में ही प्रदेश का सारा धन और मशीनरी फूंक रही हैं। क्या तमाशा है कि जब एक दलित महिला से बलात्कार हो जाता है तब प्रदेश का पुलिस महानिदेशक हैलीकॉप्टर से पीड़ित के घर जाता है और लोगों को इकठ्ठा करके धमकी देता है कि किसी ने भी इस घर की तरफ ऑंख उठाकर देखा तो खैर नहीं। अब उस बहादुर पुलिस महानिदेशक, जिसकी बहादुर फौज को एक अकेला डकैत सिर्फ एक राइफल से 52 घंटों तक टक्कर देता है और चार जवानों की बलि ले लेता है, से सवाल पूछा जाए कि महोदय आपके बहादुरी भरे वक्तव्य का क्या मतलब है और क्या पच्चीस हजार रुपये से किसी दलित की इज्जत वापिस लौट आएगी? जाहिर है कि इस वक्तव्य से सिर्फ मायावती का वोट पक्का होगा और कुछ नहीं और इसके लिए मायावती पूरा प्रयास भी कर रही हैं।
पिछले दो वर्षों में मायावती ने प्रदेश में एक नई किस्म की संस्कृति विकसित की है। अपराधी किस्म के अधिकारी उनकी खास टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। यह टीम सिर्फ मायावती के राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित करने और अवैध धन वसूली करने का एकसूत्रीय काम कर रही है। मायावती अपने इन अपराधों को छिपाने के लिए ही दलित होने का नाटक करती हैं। रीता जोशी के प्रकरण में भी मायावती की अफसरों की इस फौज ने बहुत बहादुरी दिखाई है। चर्चा है कि जिस समय बसपा के गुण्डे रीता बहुगुणा का घर फूंक रहे थे उस समय लखनऊ के विवादास्पद आईजी सादा वर्दी में बाकायदा मौके पर गश्‍त कर रहे थे कि काम को सही तरीके से अंजाम दिया जा रहा है कि नहीं। इतना ही नहीं घर फूंकने से पहले पुलिस रीता के घर पर मौजूद सारे कर्मचारियों गिरफ्तार कर ले गई। अगर यह हिंसा राज्य प्रायोजित नहीं थी तो मुख्यमंत्री कार्यालय से बमुश्किल सौ मीटर दूर स्थित रीता के घर पर फायर ब्रिगेड तब क्यों पहुंचा जब सब कुछ जलकर राख हो चुका था। यह घटना साबित करती है कि उत्तार प्रदेश में पूर्णत: राज्य प्रायोजित गुण्डाराज है और उत्तार प्रदेश धारा 356 लगाने का सही केस है।
मायावती ने एक बार भी रीता के घर पर हुई घटना के लिए न तो माफी माँगी और न यह स्वीकार किया कि इस कांड के पीछे उनके लोग थे बल्कि लगातार वह कुतर्क कर रही हैं। जैसे उन्होंने कहा कि रीता ने अपनी एक किताब में गांधी परिवार के लिए अपषब्दों का प्रयोग किया था। अब बहन जी की याद्दाश्‍त कितनी कमजोर है। बहन जी भूल गईं कि अरूण शंकर शुक्ल अन्ना नाम के आदमी पर आज भी लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड का मुकदमा चल रहा है और वह अन्ना, आज मायावती के नवरत्नों में हैं। ‘लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस कांड’ वही घटना है जब मायावती पर मुलायम सिंह यादव की सरकार से समर्थन वापिस लेने पर हमला किया गया था। इसी तरह दीनानाथ भास्कर नाम के एक व्यक्ति ने नब्बे के दषक में मायावती पर भयानक किस्म के व्यक्तिगत आरोप लगाए थे, जो रीता जोषी की भाशा से ज्यादा भद्दे थे। लेकिन भास्कर आजकल मायावती की नाक के बाल हैं। ऐसे ही धनन्जय सिंह मायावती की कृपा से आज माननीय सांसद हैं। यह वही धनन्जय सिंह हैं, जिन्हें मायावती ने रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ के साथ जेल भिजवा दिया था क्योंकि धनन्जय उस समय मायावती की सरकार गिराना चाहते थे। धनीराम वर्मा का भी मामला कुछ ऐसा ही दिलचस्प है। धनीराम वर्मा 1995 में उत्तार प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष थे। जब मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापिस लिया तो धनीराम वर्मा ने मुलायम सिंह की सरकार को विधानसभा में जबर्दस्ती बहुमत साबित करा दिया। लेकिन आज धनीराम वर्मा मायावती के चहेते हैं। मायावती यह जानती ही नहीं हैं कि उनकी सात पुश्‍तें भी मिलकर कभी हेमवती नन्दन बहुगणा के बराबर नहीं हो पाएंगी।
प्रदेश में इस गाली गलौच वाली राजनीति की शुरूआत भी मायावती ने ही की है, फिर मायावती को दर्द क्यों होता है? क्या कभी किसी व्यक्ति ने मायावती के मुँह से मुलायम सिंह यादव के लिए सम्मानजनक सम्बोधन सुना है? क्या मायावती ने मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते ठीक यही भाषा इलाहाबाद में एक कांड के बाद इस्तेमाल नहीं की थी? एक टीवी टॉक में ही मायावती ने मुलायम सिंह के लिए गुण्डा शब्द का प्रयोग किया था जिस पर तत्कालीन सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामशरणदास से मायावती की गाली गलौच हो गई थी। इसी तरह सिपाहियों की बर्खास्तगी के बाद जब मायावती के चहेते पुलिस अफसर शैलजाकांत मिश्र ने भर्ती में यौन शोषण के आरोप लगाए थे तब मायावती ने मिश्र के कान क्यों नहीं अमेठे? जबाव में शिवपाल ने भी ऐसी ही शब्दावली प्रयोग की जैसी रीता ने की। लेकिन तब मायावती के बहादुर गुण्डे शिवपाल का घर फूंकने का दुस्साहस नहीं कर सके।
कुल मिलाकर कांग्रेसी भी कमाल के लोग हैं। जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी तो रोज दस जनपथ की दौड़ लगाते थे और चिल्लाते थे कि प्रदेश में जंगलराज है, सरकार को बर्खास्त करो। लेकिन अब जब सरकार बर्खास्तगी का सही केस आया है तो यह कांग्रेसी धुरंधर आपस में ही सिर फुटव्वल कर रहे हैं और इसी गम में आपस में लड़े जा रहे हैं कि इससे रीता बहुगुणा को फायदा हो गया।
अब लाख टके का सवाल यह है कि इस समूचे घटनाक्रम से किसे क्या फायदा हुआ और क्या नुकसान हुआ? इस घटना से सर्वाधिक नुकसान मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का हुआ। अभी तक मायावती विरोध का लाभ मुलायम सिंह ही उठाते रहे हैं, लेकिन मायावती के एक नादान कदम ने कांग्रेस को अप्रत्याशित लाभ दिला दिया और रीता बहुगुणा रात ही रात में मायावती विरोधी मुहिम की हीरो बन गईं। अब अगर नाकारा कांग्रेसी, पार्टी के अन्दर रीता की घेराबंदी न करें, तो मायावती के खिलाफ प्रदेष की जनता में जो गुस्सा है उसे कांग्रेस भुना सकती है। लेकिन कांग्रेस से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह मायावती के खिलाफ आगे बढ़कर सरकार बर्खास्त करने जैसा कोई कदम उठा पाएगी। क्योंकि कांग्रेस एक भयंकर दुविधा का शिकार है कि उसे उत्तर प्रदेश में दलित वोट भी चाहिए। जो किसी भी सूरते हाल में संभव नहीं है। अगर कांग्रेस इस दुविधा में रहेगी कि उसे दलित वोट भी मिल जाएंगे तो वह अपना नुकसान कर बैठेगी। प्रदेश में दलितों का एक बड़ा वर्ग मायावती की लाख कमियों के बावजूद बसपा से ही जुड़ा रहेगा फिर चाहे राहुल गांधी सिर पर पला रखकर मैला ढोने का ही नाटक क्यों न कर लें। इसलिए कांग्रेस अगर उत्तार प्रदेष में वापसी करना चाहती है तो उसे मायावती विरोध की लाइन को और क्लियर करना पड़ेगा।
[लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और 'दि संडे पोस्ट' में सह संपादक हैं। संपर्क: एस सी टी लिमिटेड सी-15, मेरठ रोड इण्डस्ट्रियल एरिया गाजियाबाद मो 9313517853

बुधवार, 8 जुलाई 2009

गजनी के भारतीय अवतारों को सजा मिले

गजनी के भारतीय अवतारों को सजा मिले
- अमलेन्दु उपाध्याय
-आखिरकार लिब्राहन आयोग की बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट आ ही गई। इस हाई प्रोफाइल केस की जांच रिपोर्ट आने में ही कुल जमा सत्रह वर्ष लग गए। जाहिर है कि ऐसी गति से तो मुकदमें मे सजा सुनाए जाने में सत्रह सौ साल लगेंगे, वह भी तब, जब मुकदमा कायम होगा। इस सबके परे बहस का विषय यह है कि क्या इस आधार पर दोषियों को माफ कर दिया जाए कि सजा होने में कई साल लग जाएंगे? बहरहाल इस रिपोर्ट पर राजनीति शुरू हो गई है और हर कोई अपने हिसाब से कार्रवाई चाहता है।
लिब्राहन आयोग ने भाजपा समेत कई बडे दलों को पशोपेश में डाल दिया है और अनुमान लगाया जा रहा है कि जो रिपोर्ट जस्टिस लिब्राहन ने दी है उसका हश्र भी पहले बन चुके अन्य आयोगों की तरह होगा, जिनमें से कई की रिपोर्ट बस्ते में से निकलने के लिए तडपडा रही हैं और कई की रिपोर्ट पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुईर्। कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट ने मरती हुई भाजपा के लिए संजीवनी का काम किया है और भाजपा चाहती है कि सरकार इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करे ताकि वह एक बार फिर इंसानों की लाशों की राजनीति करके दिल्ली की सल्तनत पर पहुंचने का सपना साकार कर सके। लेकिन अब भाजपा के यह सपने साकार नहीं होंगे। और अगर मान भी लिया जाए कि इससे भाजपा को पांच साल बाद होने वाले चुनाव में कोई फायदा होगा, तो क्या इस अंदेशे के कारण बाबरी मस्ज्दि के क.ातिलों को खुला छोड दिया जाए? हालांकि यह कल्पित भय है और ऐसा भी नहीं है कि हमेशा ऐसी घटनाओं में सांप्रदायिक ताकतों को फायदा ही होता हो। बाल ठाकरे का मतदान का अधिकार छीना गया इससे शिवसेना को लाभ नहीं हुआ बल्कि वह पिछड गई। इसी तरह इस लोकसभा चुनाव के दौरान आडवाणी जी आतंकवाद पर बहुत चिल्लाए, मुंबई में २६/११ हुआ लेकिन जब इसके बाद चुनाव हुए तो भाजपा बुरी तरह पिछड गई।
फिर अभी लोकसभा चुनाव में पांच साल हैं, अगर सरकार रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के प्रति वास्तव में ईमानदार है तो फास्ट ट्रैक कोर्ट कर गठन करके हर रोज सुनवाई कराकर दो महीने में फैसला भी करवा सकती है। ऐसे में भाजपा क्या फायदा उठा पाएगी? चूंकि जब पांच साल बाद इसका लाभ उठाने का अवसर आएगा तब तक आडवाणी जी सियासत से विदा हो चुके होंगे। कल्याण सिंह और उमा भारती भाजपा से बाहर हैं हीं। बाकी जिन लोगों को इस केस में सजा हो सकती है वह लोग राष्ट्रीय अपील नहीं हैं। इसलिए भाजपा कोई फायदा नहीं उठा पाएगी।
दरअसल कांग्रेस की दिक्कत यह है कि संभवतः इस रिपोर्ट में पी वी नरसिंहाराव और कांग्रेस की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। ऐसे में क्यों कांग्रेस ईमानदारी से इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करेगी? ताज्जुब इस बात का है कि मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी जो लगातार बाबरी मस्जिद की कमाई खाती रही है, इस रिपोर्ट पर चुप लगा गई है। इसका कारण है। सपा के नए दोस्त कल्याण सिंह भी इस कांड में दोषी हैं जबकि मुलायम सिंह यादव चुनाव के दौरान कल्याण के गुनाहों को माफ करके घोषणा कर चुके हैं कि बाबरी मस्जिद अब मुद्दा नहीं रहा, जिसका उन्हें इस चुनाव में खमियाजा भी भुगतना पडा। अब अगर मुलायम सिंह कुछ बोलते हैं तो उनके दोस्त कल्याण सिंह के लिए मुश्किलें पैदा हो जाएंगी।
इस मसले में जल्द से जल्द दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। ऐसा इसलिए नहीं कि कुछ लाख गुंडों ने एक मस्जिद तोड दी थी। ऐसे तो हर रोज कहीं न कह मस्जिद और मंदिर तोडे ही जाते हैं। नरेन्द्र मोदी ने अभी गुजरात में कई मन्दिर गिरवाए। पाकिस्तान में कई मस्जिदें गिराई गईं। कश्मीर के राजा हर्ष ने तो बाकायदा मंदिर तोडने के लिए ’देवोत्पतन्नायक‘ नाम के अधिकारी की नियुक्ति की थी। इस केस में दोषियों को सजा मिलना इसलिए जरूरी है क्योंकि बाबरी मस्ज्दि शहीद करने वाले गुंडों ने इस मस्जिद के बहाने इस देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान पर हमला किया था, इंसानियत को तार तार किया था। स्वयं तत्कालीन राष्ट्रपति को यह कहने के लिए मजबूर होना पडा था कि बाबरी मस्जिद को गिराने वाले गुंडे थे।
हालांकि कल्याण सिंह का लिब्राहन आयोग में गवाही में कहना कि ऐसा करने को कोई पूर्वनियोजित कार्यक्रम नहीं था, सत्य ही है। दरअसल भाजपा बाबरी मस्जिद गिराना नहीं चाहती थी वह केवल इसे मुद्दा बनाकर रखना चाहती थी ताकि इस पर सियासत करती रहे और इसके जरिये धन इकठ्ठा होता रहे। लेकिन भाजपा ने जिन बंदरों की फौज अयोध्या में ६ दिसंबर १९९२ को अयोध्या में जमा की उस पर उसका नियंत्रण नहीं रहा। वरना महमूद गजनवी के संघी अवतार तो बाबरी मस्जिद को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझकर पाल रहे थे लेकिन उनके पाले बंदरों ने ऐन मौके पर काम खराब कर दिया। अब अगर इन नागपुरियों ने बाबरी मस्जिद नहीं गिराई थी तो यह इसका श्रेय क्यों लेना चाहते हैं और जब श्रेय लेना चाहते हैं तो लिब्राहन की रिपोर्ट से घबरा क्यो रहे हैं।
- लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं एवं साप्ताहिक पत्र "दी सन्डे पोस्ट " में सह सम्पादक हैं।