सोमवार, 31 दिसंबर 2012
इस भ्रष्ट व्यवस्था के चलते किसी सामाजिक न्याय की उम्मीद की जा सकती है ?
कथित दलित अथवा बहुजन स्वामी नेताओं और उनकी तलछनों का लक्ष्य अपनी भुखमरी दूर करके जनता को बेवकूफ बनाने में अधिक है, ये ताक़तें अपने आधार के साथ भारत के सबसे बडे प्रदेश में हकूमतें भी चला चुकी है और देश उनके तमाम कथित चमत्कारों से भलिभांति परिचित भी है। इनका सीमित चिंतन बुनियादी रूप से समाज के इस क्रांतिकारी तबके के गले में नौकरियों का सरकारी पट्टा डालता है बल्कि खतरनाक रूप से दुनिया के दूसरे देशों में चल रही क्रांतिकारी तहरीकों से भी जबरन दूर रखता है। उन्हें जनता के उन आन्दोलनों से अनभिज्ञ रखता है जहाँ दमित पीड़ित समाज ने अपनी तकदीरे स्वयं बदली हैं।
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दामिनी गैंग रेप प्रसंग और बहुजनस्वामियों का अट्टहास
बुधवार, 19 दिसंबर 2012
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गुरुवार, 13 दिसंबर 2012
बुधवार, 12 दिसंबर 2012
मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
सोमवार, 10 दिसंबर 2012
रविवार, 9 दिसंबर 2012
शनिवार, 8 दिसंबर 2012
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012
मंगलवार, 4 दिसंबर 2012
सोमवार, 3 दिसंबर 2012
कांशीराम की पत्रकारिता
पुस्तक में कांशीराम के 77 संपादकीय लेख संकलित किये गये हैं। पहला लेख ‘समाचार सेवाओं की आवश्यकता’ पर है, जिसमें कांशीराम ने बहुत सही सवाल उठाया है कि जातिवादी हिन्दू प्रेस दलित और शोषित समाज के समाचारों को ब्लैक आउट करता है। वे इस लेख में लिखते हैं कि इसलिये डा. आंबेडकर ने निजी समाचार सेवा के महत्व को समझ कर 1920 में ‘मूकनायक’, 1927 में ‘बहिष्कृत भारत’, 1930 में ‘जनता’ और 1955 में ‘प्रबुद्ध भारत’ नाम से समाचार पत्र निकाले थे। लेख में ‘दि आपे्रस्ड इण्डियन’ पत्रिका की शुरुआत के सम्बन्ध में लिखा है, ‘आवश्यकता और अवसर दोनों से हमें चुनौती स्वीकार करने की पे्ररणा मिली है तथा समाचार सेवा के क्षेत्र में कूदने की तैयारी है।’ वे अन्त में लिखते हैं, अगले दो सालों में देश के कोने-कोने से समाचार सेवा का विस्तार हो जायगा।’
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