रंगभेदी व्यवस्था के वर्चस्ववाद को यथावत बनाये रखने और उसे महिमामंडित करने के लिए मूर्तियां और स्मारक बेहद अनिवार्य हैं। व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी विचारधारा और उसके मिशन को तिलांजलि देने का श्राद्धकर्म सबसे महान कर्मकांड है, जिसकी जनमानस में अमिट छाप बन जाती है।
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राजनीतिक वर्चस्ववाद के दांव पर अंबेडकर स्मारक
सोमवार, 26 नवंबर 2012
राजनीतिक वर्चस्ववाद के दांव पर अंबेडकर स्मारक
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।
शनिवार, 24 नवंबर 2012
एनटीपीसी में और विनिवेश को जीओएम की मंजूरी
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तो फिर छला गया बुंदेलखंड …….अब हमार का हुई, मुख्यमंत्री धोखा दीन है !
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गुरुवार, 22 नवंबर 2012
कसाब नहीं है सरबजीत, जरदारी को बोले जस्टिस काटजू
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बुधवार, 21 नवंबर 2012
एक दिन जमीन को लील लेंगे पूंजी के दलाल और सत्ता के काले लोग
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कला विधाओं का कोलाज है श्रीनिवास श्रीकान्त का रचनाकार
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खन्नात की नरबदिया आर्मो
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यूपी को गुजरात नहीं बनने देगी भाकपा
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राहुल को जिम्मा देने के अलावा चारा भी क्या था?
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मंगलवार, 20 नवंबर 2012
जस्टिस काटजू ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से पूछा, कहाँ है लोकतन्त्र
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गाज़ा पट्टी में इज़राइल के हमले के विरोध में भारत में भी विरोध के स्वर
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रविवार, 18 नवंबर 2012
अच्छा बताओ तो गाजापट्टी क्या है ? भेड़ों का बाड़ा या जिन्दा कब्रगाह………….
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शनिवार, 17 नवंबर 2012
सती महिमा से खाप सत्ता तक
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विश्व भूख सूचकांक में भारत : भूख, कुपोषण से मुक्त कराने के प्रचार की धोखाधड़ी
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जेम्स बॉन्ड की राजनीति
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शुक्रवार, 16 नवंबर 2012
लोनिया टोला में पकड़े गए दंगाई –एक पहलु ये भी !
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जोड़ों के चोट के लिए आर्थोस्कोपी काफी कारगर
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स्वार्थप्रेरित होती पाँव छूने की परंपरा
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खाप गोत्र के सवाल विज्ञान के आइने में
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हेल्पलाइन तो ठीक पर मुख्यमन्त्री महोदय…….
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बुधवार, 14 नवंबर 2012
सवाल यह है, इन बच्चों को कौन बचायेगा ?
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रविवार, 11 नवंबर 2012
चल झूठे, एसटीएफ का एएसपी झूठ नहीं बोल सकता !
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शनिवार, 10 नवंबर 2012
नौ महीने में केवल दस दंगे : जियो मेरे युवराज
ये हालात सिर्फ इसलिये पैदा हो रहे हैं कि अफसरों का इकबाल खत्म हो चुका है। कानून-व्यवस्था के लिए सरकार लम्बा समय नहीं मांग सकती। वास्तविकता यह है कि मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री का तेवर देख कर ही अधिकारियों के काम करने का रवैया बदल जाता है और अगर तेवर दिखाने के लिए भी समय की जरूरत हो, तो इस पर आश्चर्य जरूर होता है।
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नौ महीने में केवल दस दंगे : जियो मेरे युवराज
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नौ महीने में केवल दस दंगे : जियो मेरे युवराज
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गुरुवार, 8 नवंबर 2012
राहें चार अभियानों की
"अन्ना के अभियान से लाखों लोग इसलिए नहीं जुड़े कि वे लोकपाल कानून को अपने सभी दुखों की रामबाण दवा समझते थे। वे इसलिए जुड़े थे कि इसमें उन्हें अनंत संभावना दिख रही थी। इस संभावना को अन्ना की टीम ने बंटे दिमाग के कारण भंवर में फंसा दिया है। जो कल तक अन्ना की टीम थी, वह अब अन्ना की प्रतिद्वंद्वी है।"
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http://hastakshep.com/?p=26013
राहें चार अभियानों की
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राहें चार अभियानों की
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बुधवार, 7 नवंबर 2012
किसानों की जमीनों को छीनने के सवाल पर एकजुट हैं बसपा और सपा
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मंगलवार, 6 नवंबर 2012
इरोम की नहीं, लोकतंत्र की हार है यह चुप्पी !
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सोमवार, 5 नवंबर 2012
विशेष राज्य का दर्ज़ा बाद में, पहले नवरुणा दिलाओ सुशासन बाबू
बिहार के मुख्यमंत्री सुशासन बाबू जिस समय पटना में अधिकार रैली करके दहाड़ रहे थे ठीक उसी समय मुजफ्फरपुर के छात्र मुजफ्फरपुर से अपहृत ११ वर्षीय नववरूणा का 44 दिन बीतने के बाद भी पता न चलने पर दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना देकर बिहार में बढ़ती हत्या, बलात्कार और अपहरण की घटनाओं पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से मांग कर रहे थे कि आम बिहारियों कि सुरक्षा सरकार सुनिश्चित करें..................Read Moreon hastakshep.com
विशेष राज्य का दर्ज़ा बाद में, पहले नव वरुणा दिलाओ सुशासन बाबू
विशेष राज्य का दर्ज़ा बाद में, पहले नव वरुणा दिलाओ सुशासन बाबू
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भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में गुम न हो जाय, इरोम शर्मिला की आवाज
इरोम शर्मिला ने जब भूख हड़ताल की शुरुआत की थी, उस वक्त वे 28 साल की युवा थीं। कुछ लोगों को लगा था कि यह कदम एक युवा द्वारा भावुकता में उठाया गया है। लेकिन समय के साथ इरोम शर्मिला के इस संघर्ष की सच्चाई लोगों के सामने आती गई। जिस अंधियारे के विरुध्द इरोम शर्मिला का संघर्ष है, इसमें उनके साथ कुछ भी हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में इरोम शर्मिला की आवाज गुम न हो जाय, यह सुनी व समझी जाय तथा इसके पक्ष में जनमत तैयार हो।................................Read More on hastakshep.com
भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में गुम न हो जाय, इरोम शर्मिला की आवाज
भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के शोर में गुम न हो जाय, इरोम शर्मिला की आवाज
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हर कोई अयोध्या के धोबी की भूमिका निभाने को आतुर है
क्या भ्रष्टाचार ही हमारे राष्ट्रीय जीवन का एकमात्र मुद्दा बच गया है। अगर ऐसा है तो सार्वजनिक जीवन में शुचिता कायम करने के नाम पर हाल-हाल में जो आंदोलन हुए वे क्यों असफल हो गए।.................................................अरविंद केजरीवाल अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए व्यग्र हैं। राबर्ट वाड्रा के बहाने सोनिया गांधी पर हमला करने से उन्हें मीडिया में प्रचार और सस्ती लोकप्रियता मिल सकती है। शायद इसीलिए उन्होंने कानूनी कार्रवाई के बजाय मीडिया ट्रायल का रास्ता चुना।.....................................Read More on hastakshep.com
हर कोई अयोध्या के धोबी की भूमिका निभाने को आतुर है
हर कोई अयोध्या के धोबी की भूमिका निभाने को आतुर है
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कोड ऑफ साइलेंस बन गया है सेल्फ रेगुलेशन
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समन्वय भाषाई सम्मान 2012 कँवल भारती को
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भारत-चीन व्यापार की चिंताएं और संभावनाएं
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रविवार, 4 नवंबर 2012
ऐसे तो ना सुधरेगी कानून व्यवस्था ?
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शनिवार, 3 नवंबर 2012
ये जो नया बिहार है… बड़ा खतरनाक है
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गुरुवार, 1 नवंबर 2012
एक असफल प्रयास ‘‘शुद्रा द राईजिंग’’
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