हिन्दुत्व की अवधारणा ही आतंकी है
अमलेन्दु उपाध्याय
कांग्रेस के साथ आरंभ से दिक्कत यह रही है कि वह किसी भी मुद्दे पर कोई भी स्टैण्ड चुनावी गुणा भाग लगाकर लेती है और अगर मामला गांधी नेहरू खानदान के खिलाफ न हो तो उसे पलटी मारने में तनिक भी हिचक नहीं होती है। उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर देश में सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतें अपना विस्तार करती रही हैं और कांग्रेस फौरी नुकसान देखकर अहम मसलों पर अपने कदम पीछे हटाती रही है जिसका बड़ा नुकसान अन्तत: देश को उठाना पड़ा है। कुछ ऐसा ही मामला फिलहाल 'भगवा आतंकवाद' के मसले पर हुआ जब राज्य पुलिस महानिदेशकों के एक तीन दिवसीय सम्मेलन में गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने ध्यान दिलाया कि देश में भगवा आतंकवाद भी है। बस भगवा गिरोह ने जब शोर मचाना शुरू किया तो कांग्रेस बैकफुट पर आ गई और चिदंबरम से उसने अपना पिण्ड छुड़ा लिया। नतीजतन हिन्दुत्ववादी आतंकवादियों के हौसले बुलन्द हैं।
यहां सवाल यह है कि क्या वास्तव में भगवा आतंकवाद जैसा कुछ है? और क्या आतंकवाद का कोई धर्म होता है? जाहिर सी बात है कि समझदार लोगों का जवाब यही होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और न कोई रंग होता है। लेकिन चिदंबरम ने जो कहा उससे भी असहमत होना आसान नहीं है। चिदंबरम के शब्द प्रयोग में असावधानी हो सकती है लेकिन भावना एकदम सही है। जिस आतंकवाद की तरफ चिदंबरम ने इशारा किया उसकी आमद तो आजादी के तुरंत बाद हो गई थी और इस आतंकवाद ने सबसे पहली बलि महात्मा गांधी की ली। उसके बाद भी यह धीरे धीरे बढ़ता रहा और 6 दिसम्बर 1992 को इसका विशाल रूप सामने आया।
हाल ही में जब साध्वी प्रज्ञा, दयानन्द पाण्डेय और कर्नल पुरोहित नाम के दुर्दान्त आतंकवादी पकड़े गए तब यह फिर साबित हो गया कि ऐसा आतंकवाद काफी जड़ें जमा चुका है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी का चिदंबरम के बयान पर हो- हल्ला मचाना 'चोर की दाड़ी में तिनका' वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
पहली बात तो यह है कि भगवा रंग पर किसी राजनीतिक दल का अधिकार नहीं है और न करने दिया जाएगा। यह हमारी सदियों पुरानी आस्था का रंग है। लेकिन चिदंबरम के बयान के बाद भाजपा और संघ यह दर्शाने का प्रयास कर रहे हैं गोया भगवा रंग उनका ही हो। अगर ऐसा है तो भाजपा का झण्डा भगवा क्यों नहीं है?
अब संघी भाई कह रहे हैं कि हिन्दू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता। बात सौ फीसदी सही है और हम भी यही कह रहे हैं कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता और आतंकवादी गतिविधिायों में जो आतंकवादी पकड़े गए हैं या अभी पकड़ से बाहर हैं वह किसी भी हाल में हिन्दू नहीं हो सकते वह तो 'हिन्दुत्व' की शाखा के हैं। दरअसल 'हिन्दुत्व' की अवधारणा ही आतंकी है और उसका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। कोई भी धर्मग्रंथ, वेद, पुराण, गीता रामायण हिन्दुत्व की बात नहीं करता न किसी भी धर्मग्रंथ में 'हिन्दुत्व' शब्द का प्रयोग किया गया है।
हिन्दुत्व एक राजनीतिक विचार धारा है जिसकी बुनियाद फिरकापरस्त, देशद्रोही और अमानवीय है। आज हमारे संधी जिस हिन्दुत्व के अलम्बरदार बन रहे हैं, इन्होंने भी इस हिन्दुत्व को विनायक दामोदर सावरकर से चुराया है। जो अहम बात है कि सावरकर का हिन्दुत्व नास्तिक है और उसकी ईश्वर में कोई आस्था नहीं है। जबकि हिन्दू धर्म पूर्णत: आस्तिक है। उसकी विभिन्न शाखाएं तो हैं लेकिन ईश्वर में सभी हिन्दुओ की आस्था है। लिहाजा ईश्वर के बन्दे आतंकी तो नहीं हो सकते पर जिनकी ईश्वर में आस्था नहीं है वही आतंकी हो सकते हैं।
जो अहम बात है कि हिन्दू धर्म या किसी भी धर्म के साथ कोई 'वाद' नहीं जुड़ा है क्योंकि 'वाद' का कंसेप्ट ही राजनीतिक होता है जबकि 'हिन्दुत्व' एक वाद है। और आतंकवाद भी एक राजनीतिक विचार है। दुनिया में जहां कहीं भी आतंकवाद है उसके पीछे राजनीति है। दरअसल आतंकवाद, सांप्रदायिकता के आगे की कड़ी है। जब धर्म का राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए हथियार की तरह प्रयोग किया जाता है तब सांप्रदायिकता का उदय होता है और जब सांप्रदायिकता के जुनून को पागलपन की हद तक ले जाया जाता है तब आतंकवाद पैदा होता है।
भारत में भी जिसे भगवा आतंकवाद कहा जा रहा है वस्तुत: यह 'हिन्दुत्ववादी आतंकवाद' है, जिसे आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन पालते पोसते रहे हैं। संघ की शाखाओं में बाकायदा आतंकवादी प्रशिक्षित किए जाते हैं जहां उन्हें लाठी- भाला चलाना और आग्नेयास्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। दशहरे वाले दिन आतंकवादी अपने हथियारों की शस्त्र पूजा करते हैं।
फिर प्रतिप्रश्न यह है कि भाजपा और संघ को चिदंबरम के बयान पर गुस्सा क्यों आता है? 'मजहबी आतंकवाद', 'जिहादी आतंकवाद' और 'वामपंथी उग्रवाद' जैसे शब्द तो संघ के शब्दकोष की ही उपज हैं न! अगर मजहबी आतंकवाद होता है तो भगवा आतंकवाद क्यों नहीं हो सकता? अगर वामपंथी उग्रवाद होता है तो दक्षिणपंथ का तो मूल ही उग्रवाद है। अगर 'जिहादी आतंकवाद' और 'इस्लामिक आतंकवाद' का अस्तित्व है तब तो 'भगवा आतंकवाद' भी है। अब यह तय करना भाजपा- आरएसएस का काम है कि वह 'किस आतंकवाद' को मानते हैं?
nice article...
जवाब देंहटाएंA Silent Silence : Mout humse maang rahi zindgi..(मौत हमसे मांग रही जिंदगी..)
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nice post.
जवाब देंहटाएंहिन्दुत्व शब्द का मूल वैष्णववाद से है। वाद राजनीति प्रेरित शब्द हो सकता है लेकिन इतिहास साक्षी है कि हर वाद ने समकालीन पुर्नजागरण का काम किया है। संघ पर आरोप लगाने से पहले क्या कोई प्रमाण है कि संघ आतंकवादियोँ को प्रशिक्षण दे रहा है? अगर भारत के नागरिकोँ को शारीरिक रुप से सक्षम बनाना, आतंकवादियोँ को प्रशिक्षण देना है, तो सिँगापुर, इस्त्राइल जैसे देश, जहाँ सैन्य शिक्षा अनिवार्य है, को आतंकवादी राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए?
जवाब देंहटाएंअगर हिन्दुत्व शब्द का प्रमाण किसी ग्रन्थ मेँ नहीँ है तो हिन्दुत्ववादी आतंकवाद शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई।
आपने लिखा है संघ अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाता है. ठीक है ये सब लोग उसकी सभा में देखते है नजर के सामने है. लेकिन लोग ये कियो नहीं सोचते की ये सब केवल आत्म रक्षा के लिए है जैसे कोई लड़का या लकड़ी जुडो कराटे की कलास लेने जैसा ही है इस शिक्षा को, आप आतंकवादियों की चोरी छुपी रोकेट चलने और बिभिन्न प्रकार की आधुनिक हथियारों को शिक्षा से कैसे तुलना कर दिया आपने ये बात मेरे समझ में नहीं आई. जहा तक अगर संध की शिक्षा आत्म रक्षा के अगर हमेशा जारी रहती है तो ये एकदम सही है और हर देश प्रेमी इसे मानेगा.
जवाब देंहटाएंइस देश में कही भी आपदा आती है तो सब से पहले संध ही विचलित होता है और वहा बिना सरकारी मदद के पहुचता है जब की पत्रकार महोदय लोग भी सुचना का इंतजार तथा पैसे के बारे में सोचते है की कहा से T.A D.A मिलेगा तो पहुचुगा.
संघ को समझने के लिए संध के नजदीक जाना पड़ेगा. संघ के फिलोसफी को दूर से नहीं समझा जा सकता. संध को कुछ लोग इस प्रकार भी बदनाम किये थे की संध सनातन धर्म का पक्ष रखने वाला है ये अगर भारत में फैल जायेगा तो छुया छूत फैलेगी ये बात पुरानी हो गई आरोप लगाने वाले पता नहीं कहा खो गए लेकिन संघ वही खड़ी है. उसी तरह आज लोग संघ को आतंकवादी गिरोह के संज्ञा दे रहे है. संघ कुछ भी आपनी प्रकिया नहीं देता है. जब देता है तो बहुतो को मिर्ची लग जाती है. खैर ये बात भी पुरानी हो जायेगी लोग जो आज तरह तरह की बयान कांग्रेस की तरफ से कह रहे है ओ भी कही गुम हो जाये गे लेकिन संघ वही का वही खड़ा रहेगा.
संघ है तो भारत है. नहीं तो कब का बेच के खा जाते सब.
फिलहाल तो देश में संघ पर चिंता करने के अपेक्षा बहुत से मुदे है महगाई, घोटाला, नक्सलवाद, आतंकवाद,और पता नही क्या क्या.
लेकिन कुछ लोग तो ये भी कह देगे की ये सारी बाते संघ के कारण हो रही है. इसलिए संघ के लोगो को देश से बाहर निकाल दो तो ये सब समस्या हल हो जायेगी.
धन्यवाद
वह अमलेंदु जी, क्या दूर की कौड़ी खोज लाये है आप. इस प्रकार का उलूलजुलूल मुद्दा उठाकर आपने अपने प्रचार का अच्छा रास्ता खोज लिया है.संघ के लोगो से मेरे भी संपर्क हैं. आपकी बातो की सचाई जानने के लिए मैं सघ की शाखा में लगातार गया. उनके प्रशिक्षण वर्गों का भी अध्ययन किया तो आपके तो दो आरोप साफ झूठ निकले . पहला - सघ की शाखाओं में भाला शिखाया जाता है - यह पूरी तरह झूट है. दूसरा - अग्येयास्त्रो का प्रशिक्षण दिया जाता है - यह तो झूठ का पुलिंदा है. मैंने और पता किया , संघ के शारीरिक प्रशिक्षण का अपना अलग पाठ्यक्रम है उसमे न तो कही भाला और न कहीं आग्नेयास्त्र चलाने या सिखाने का जिक्र है. आपके इस झूठे तथ्य से समझ में आ गया की आपकी बाते हवाई कल्पनाओं पर आधारित हैं अतः आपके बाकी लेख को पदने की इच्छा ही नहीं हुई.
जवाब देंहटाएंभाई अमलेंदु जी, कुछ सकारात्मक एवं रचनात्मक चीज लिखिए, क्या सड़ी गली चीजें लिख कर ब्लॉग की धवल छवि को कलंकित कर रहें है. इन पंक्तियों पर अगर अमल कीजिये तो शायद आपकी नकारात्मक सोच बदल जायगी.
" बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल ढूँढा अपनों, मुझ से बुरा न कोय. "