सोमवार, 4 जनवरी 2010

गुरूजी जी को ही दोश क्यों?

गुरूजी जी को ही दोश क्यों?

अमलेन्दु उपाधयाय
आखिरकार गुरूजी का झारखण्ड का मुख्यमंत्री बनने का सपना साकार हो ही गया। भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से गुरूजी तीसरी बार और मुकम्मल तौर पर पहली बार झारखण्ड के मुख्यमंत्री बने हैं। हालांकि भाजपा के सामने समस्या यह थी कि वह उन गुरूजी को कैसे समर्थन दे दे जिनके ऊपर वह कुल जमा चार रोज पहले ही भ्रश्टाचार के आरोप लगा रही थी और उसने गुरूजी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था और कई दिन संसद नहीं चलने दी थी।
 हालांकि भाजपा ने मन मसोसकर और कलेजे पर पत्थर रखकर गुरूजी को समर्थन दिया है, क्योंकि इसके अलावा न भजपा के पास कोई विकल्प था और न गुरू जी के सामने अपनी जिद पूरी करने के लिए कोई अन्य विकल्प बचा था। भाजपा की मजबूरी यह थी कि वह जानती थी कि अगर उसने गुरूजी को समर्थन देने में जरा भी देर की तो कांग्रेस उसका फायदा उठाकर प्रदेष में राश्ट्रपति षासन लागू कर सकती थी और फिर जिस तरह का खेल उसने हरियाणा में अभी निर्दलीयों विधाायकों की मदद लेकर और भजनलाल के बेटे कुलदीप बिष्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस को तोड़कर खेला था, वैसा ही खेल वह झारखण्ड में भी खेल सकती थी। इसलिए भाजपा ने गुरूजी को समर्थन देकर उन पर कोई उपकार नहीं किया है बल्कि उसने कांग्रेस के दांव का काट करने के लिए ही गुरूजी को समर्थन दिया है।
 अब कांग्रेस भी गुरूजी को भ्रश्टाचारी बता रही है। लेकिन सवाल यह है कि गुरूजी तब भ्रश्टाचारी नहीं थे जब मनमोहन सिंह की कुर्सी बचाने के लिए यूपीए को समर्थन दे रहे थे और न तब भ्रश्टाचारी थे जब अभी चार रोज पहले तक कांग्रेस उनसे सौदेबाजी कर रही थी। फिर आज गुरूजी कैसे भ्रश्टाचारी हो गए? कांग्रेस को भी अफसोस गुरूजी के मुख्यमंत्री बनने का कम और भाजपा के समर्थन पाकर उनके सत्ताा संभालने का ज्यादा है। वैसे भी ईमानदारी की बात यह है कि झाारखण्ड की जनता ने गुरूजी को ही सही मायनो में जनादेष दिया है। भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद जिस गरूर में थी उसे जनता ने तोड़ दिया। उसका जद यू के साथ गठजोड़ और भ्रश्टाचार के खिलाफ विधावा विलाप जनता को रास नहीं आया। कांग्रेस को भी जनता ने करारा जवाब दिया। उसकी राश्ट्रपति षासन बढ़ाकर मधाु कोड़ा और कई अन्य पूर्व मन्त्रियों को भ्रश्टाचार के आरोप में जेल भेजे जाने के तुरूप के पत्तो को भी जनता ने फेल कर दिया। लेकिन गुरू जी के संकट के समय जनता ने उनका साथ दिया।
 देखा जाए तो कांग्रेस ने तो गुरू जी के साथ घोर अन्याय किया और अभी भी उसकी चाल गुरू जी को कमान न सौंपकर स्वयं गद्दी हथियाने की ही थी। याद होगा कि कांग्रेस के छल के बाद गुरूजी के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। गुरू जी ने थोड़े समय के अन्तराल पर ही अपने सगे छोटे भाई और बेटे को खोया। तब गुरू जी ने भाव विह्वल होकर कहा था कि यह उनका खराब समय है उन्होंने सत्ताा भी गंवा दी और भाई भी खो दिया। लेकिन कांग्रेस ने उन गुरूजी की पीठ में छुरा भोंका जिन गुरूजी ने मनमोहन सिंह के गुरू नरसिंहाराव और खुद मनमोहन सिंह की सरकार बचाई थी। फिर कांग्रेस को गुरू जी से किसी भी तरह के गिले षिकवे का नैतिक अधिाकार नहीं है।
 जहां तक भाजपा का सवाल है तो उसके लिए भी भ्रश्टाचार का मसला कोई मायने नहीं रखता है। क्योंकि वहां भी बंगारू लक्ष्मण, साक्षी महाराज और डॉ छत्रपाल जैसों की पुरानी परंपरा है। इससे पहले भी जब उसका जनसंघी अवतार था तब भी वीरेन्द्र कुमार सखलेचा जैसे पवित्र लोग उसका नाम रोषन करते रहे हैं। उसके परम प्रिय जॉर्ज फर्नांडीज और जया जेटली को लोगों ने देखा ही। फिर कैसा भ्रश्टाचार। भाजपा भी जानती है कि सिध्दान्त की बातें तभी तक ठहक हैं जब तक सत्ताा न मिले। वह भी राजनीतिक दल है और उसे भी सत्ताा चाहिए। वह कोई साधाु सन्तों की संगत तो है नहीं और जो दस बीस साधाु टाइप के गेरूआवस्त्रधाारी उसकी फौज में षामिल हैं वह भी सत्ताा का स्वाद चखने के लिए ही संन्यास छोड़कर राजनीति में आए हैं। इसलिए सबने अपनी अपनी मजबूरी में दांव चले हैं और जिस प्रदेष का मुख्यमंत्री एक लेबर कांट्रैक्टर और निर्दलीय विधाायक मधाु कोड़ा बन सकता है उस राज्य का मुख्यमंत्री बनने का पहला नैतिक अधिाकार तो उन गुरूजी का ही बनता है जिन्होंने अपना पूरा जीवन झारखण्ड राज्य के गठन के लिए लगा दिया। रहा सवाल भ्रश्टाचार के आरोपों का तो जिस राज्य में 73 फीसदी विधाायक आपराधिाक पृश्ठभूमि के हों वहां कौन कैसा भ्रश्टाचारी? और यह सवाल उठाने का नैतिक अधिाकार किसके पास है क्या भाजपा और कांग्रेस अपने गिरेबान में झांकने के बाद ऐसा सवाल कर सकते हैं?



अमलेन्दु उपाधयाय
सी - 15, मेरठ रोड इंडस्ट्रियल एरिया
गाजियाबाद

मो 9313517853/ 9410672811

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें