रूचिका गिरहोत्रा यौन उत्पीडन मामले में कुछ ऎसा ही हुआ, जब उसकी सखी आराधना प्रकाश गुप्ता ने उठाया पहला कदम और आज 19 साल बाद नतीजा सामने आता नजर आ रहा है। एक ऎसा केस, जो सीआरपीसी में संशोधन की वजह बना। पूरा देश 32 साल की आराधना की हौसला अफजाई कर रहा है और कह रहा है- 'आराधना हम तुम्हारे साथ हैं!'
इस लडाई की शुरूआत होती है एक अकेले इंसान के बूते। फिर उसके साथ बेशुमार लोगों का कारवां जुडता जाता है और मंजिल करीब नजर आने लगती है।
बेशक यह लडाई मैं इसलिए लड रही हूं क्योंकि रूचिका मेरी अंतरंग सहेली थी लेकिन यह लडाई लडने के पीछे जज्बा यह है कि जिस नाइंसाफी को मैंने और रूचिका ने सहा है और जो ज्यादतियां हमने सहीं, वैसा अब किसी और रूचिका के साथ नहीं हो। आज स्थिति यह है कि किसी बच्चे के साथ कोई अन्याय या यौन उत्पीडन होता है तो लोग पुलिस के पास जाने से डरते हैं। मैं चाहती हूं कि सिस्टम बदले और ऎसी घिनौनी हरकतें करने वाले समझ जाएं कि उनके लिए कानून एक बराबर है और पुलिस भी लोगों को अपनी सहायक मालूम पडे न कि लोगों में पुलिस का ही खौफ हो। आज मेरी लडाई किसी एक व्यक्ति विशेष के ही खिलाफ नहीं है। आज लोगों का न्याय व्यवस्था से विश्वास उठने लगा है। उन्हें लगता है कि ताकतवर के लिए मुल्क में कानून अलग है और कमजोर के लिए अलग। लेकिन रूचिका के मामले में न्याय की उम्मीद बढने से लोगों का भरोसा बहाल होगा।
ऎसा नहीं है कि ऎसी ज्यादतियों की शिकार केवल लडकियां ही होती हैं। कई बार छोटे बच्चे, लडके और लडकी दोनों ही ऎसी वारदातों में शिकार होते हैं। मैं चाहती हूं कि ऎसा समाज बने और लोग इतने जागरूक हो जाएं कि राठौड जैसा कोई भी अपराधी ऎसी नीच हरकत करने का दुस्साहस न कर सके। यदि ऎसी सोसायटी बन पाती है, यह सिस्टम अपने में बदलाव ला पाता है तभी मेरी लडाई सार्थक होगी और रूचिका को भी सही मायनों में न्याय मिल सकेगा, जब कोई और रूचिका किसी और राठौड का शिकार न बने।
मैं रूचिका की लडाई को आखिरी मुकाम तक ले जाऊंगी और देश में जहां भी ऎसे कोई मामले सामने आएंगे, पूरी शिद्दत के साथ उस लडाई में शामिल होऊंगी।
मैं और रूचिका बचपन से ही पक्के दोस्त थे। हमारी मुलाकात भी इत्तफाक से हुई और फिर हमें लगने लगा जैसे हम सगी बहनेे ही हैं। बात 1989 की है। सेक्टर-6 के मार्केट में मेरी पहली मुलाकात रूचिका से हुई थी। इसके एक साल पहले ही 1988 में उसकी मां का देहांत हो गया था। मेरे माता-पिता (आनंद प्रकाश और मधु) रूचिका को भी मेरी तरह ही स्नेह करते थे और वह भी मेरे माता-पिता से अपना दुख-दर्द बेहिचक कहती थी। वह मेरी मां को ही अपनी मां समझती थी। रूचिका बहुत ही हंसमुख, चंचल और बहादुर लडकी थी। वह हर पल को परिवार के साथ मिल-बांटकर जीना चाहती थी। वह कहा करती थी कि हम दोनों की दोस्ती अटूट है। मैं और रूचिका एक दूसरे का हाथ पकडकर फिल्म 'शोले' का गाना गाते थे- 'ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे/ तोडेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोडेंगे।' उसे यह गाना बहुत प्यारा लगता था। लेकिन मुझे क्या मालूम था कि एक दिन वह मुझे यूं अकेला छोडकर दुनिया से चली जाएगी। उसे टेनिस का बहुत शौक था और वह एक सफल और बडी टेनिस खिलाडी बनना चाहती थी। वह अगर आज जीवित होती तो निश्चित रू प से शीर्ष टेनिस खिलाडी होती। मुझे याद है कि जब हम टेनिस खेलते थे, तो राठौड रोज हमें घंटों खेलते हुए देखता था। लंबे स्कर्ट पहनने के लिए वह हमें फटकारता था। इसलिए हमें अपने लंबे स्कर्टों को मोडना पडता था।
आज रूचिका नहीं है, लेकिन मेरी यादों में वह हरदम जिंदा है। रह-रह कर उसकी बहुत-सी बातें याद आती हैं और लगता है जैसे वह मुझसे बात कर रही है और मेरे सामने है। मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं नवीं कक्षा में थी और वह दसवीं में। लगभग हर स्कूल में जूनियर छात्र अपने सीनियर्स को फेयरवेल पार्टी दिया करते थे। मैंने भी ऎसी ही एक पार्टी में हिस्सा लिया। तब एक बडी बहन की तरह रूचिका ने मेरा मेकअप किया और मेरा हेयर स्टाइल भी बिलकुल अपने जैसा बनाया। पार्टी में मेरे हेयर स्टाइल को देखकर हमारी सभी सहपाठियों ने कहा कि हम बिलकुल बहनें लग रही हैं।
शायद मेरे उससे गहरे जुडाव के कारण ही मुझे शक्ति मिली और मैं 19 साल तक उसके गुनहगार को सजा दिलाने के लिए संघर्ष करती रही। इस लडाई में मेरी मां और मेरे पापा ने पूरा साथ दिया। यहां तक कि हमें भी राठौड के लोगों ने प्रताडित किया। रूचिका तो बिलकुल टूट ही गई थी। उसने इस सिस्टम से हार मान ली थी। उसे यकीन नहीं रह गया था कि यह सिस्टम उसके साथ कोई इंसाफ कर पाएगा। उसके भाई आशु को भी राठौड के इशारे पर प्रताडित किया गया और उस पर झूठे मुकदमे लाद दिए गए। कई दिन तक अवैध पुलिस हिरासत में मारपीट की गई, तब तो वह बिलकुल ही टूट गई और उसने इंसाफ की उम्मीद छोडकर आत्महत्या का रास्ता चुना। रूचिका की मौत ने मुझमें हौसला ला दिया। मैं जानती थी कि यह सिस्टम वैसे भी पुरूष प्रधान है। लेकिन मुझे उम्मीद थी कि एक दिन उसे इंसाफ जरूर मिलेगा। देर हो सकती है लेकिन जिस दिन जनता जागेगी, यह सिस्टम सुधर जाएगा। मुझे इस देश की न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था और आज भी है, इसलिए मैं रूचिका की लडाई को आगे बढा पाई। मुझे लोग बधाई दे रहे हैं कि मेरे जज्बे के कारण सरकार ने सीआरपीसी में संशोधन किया। ऎसे मामलों की सुनवाई का समय निर्धारित किया तथा हर शिकायत पर एफआईआर दर्ज करना जरू री कर दिया। लेकिन मैं तो यही कहूंगी कि कानून बदल देने से ही सिस्टम नहीं सुधर जाएगा बल्कि जब तक सत्ता और प्रशासन में बैठे लोगों की नीयत नहीं बदलेगी, तब तक कुछ नहीं होने वाला।
इतना जरू र जानती हूं कि समाज में कुछ लोग ऎसे भी होते हैं जो पावर और पैसे के साथ चलते हैं। हरियाणा की मौजूदा सरकार जैसा काम कर रही है उससे तो यही लग रहा है कि फिर राठौड को बचाने का काम किया जा रहा है और यह किसके इशारे पर या दबाव में किया जा रहा है, यह सरकार ही जाने। लेकिन इस सबके बावजूद मुझे और मेरे परिवार को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है, इस जंग में जीत हमारे भरोसे की ही होगी।
न्याय की नैया पर भारी जन आक्रोश
19
साल बाद रूचिका मामले में आईजी शंभू प्रताप सिंह राठौड को मात्र छह महीेने की कैद और 1000 रूपए जुर्माने की सजा मिली। आखिरकार बढते विरोध को देखते हुए राठौड का पुलिस पदक वापस लेने की कवायद भी की गई। अब दोषी पाए जाने वाले पुलिस अधिकारियों के पदक निरस्त हो जाने की व्यवस्था लागू कर दी गई है।
1999
जेसिका लाल को गोली मारने वाले हरियाणा के कांग्रेसी नेता के बेटे मनु शर्मा को 2006 में आजीवन कारवास की सजा सुनाई।
1996
लॉ स्टूडेंट प्रियदर्शिनी मट्टू से बलात्कार करने वाले संतोष कुमार सिंह को 2000 में हत्या और बलात्कार का दोषी ठहराया गया।
अमलेंदु उपाध्याय
से बातचीत पर आधारित
साभार राजस्थान पत्रिका १३ जनवरी 2010
aradhana ke saahas ko salaam,ye unake jajbe ki jeet hai,unaki dost ke un par vishvas ki jeet hai.
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