बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

जनविरोधी कदम है पैट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाना

जनविरोधी कदम है पैट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाना


-अमलेन्दु उपाध्याय



किरीट पारीख समिति की रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार एक बार फिर कैरोसिन, डीजल, पैट्रोल और रसोई गैस के दामों में बढ़ोत्तरी करने जा रही है। हर बार की तरह इस बार भी वही पुराना तर्क दिया जा रहा है कि पैट्रोलियम पदार्थों पर जारी सब्सिडी के चलते पैट्रोलियम कंपनियों को जबर्दस्त घाटा हो रहा है और राजकोश पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

मासूम सा दिखने वाला यह सरकारी तर्क दरअसल बहुत खतरनाक है और सत्ता की जनविरोधी मानसिकता को दर्षाने वाला है। पहली बात तो यह है कि सरकार सब्सिडी का ढोल तो पीट रही है लेकिन यह नहीं बता रही कि डीजल और पैट्रोल पर वह आम जनता से क्या कर वसूल रही है। यदि सरकार इन करों में ही कटौती कर दे तो पैट्रोल और डीजल के दाम वर्तमान से आधे रह जाएंगे। इस मूल्य वृद्धि को टालने का दूसरा आसान और सुगम तरीका हो सकता है बषर्ते सरकार अपनी गरीब विरोधी मानसिकता को छोड़े। यदि लक्जरी कारें रखने वालों पर प्रतिवर्श अतिरिक्त कर लगा दिया जाए और एक परिवार में एक से ज्यादा अधिक कारें रखने वालों के ऊपर कर बढ़ा दिए जाएं तो मसला आसानी से हल हो सकता है और पैट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। क्योंकि लक्जरी कारें और एक से अधिक कारें आम आदमी नहीं रखता बल्कि वह तो सार्वजनिक वाहनों से ही सफर करता है।

डीजल पैट्रोल के दाम में वृद्धि से आम आदमी ही सर्वाधिक प्रभावित होता है। जबकि छूट का फायदा बड़े लोग उठा ले जाते हैं। सरकार वैसे ही महंगाई रोकने में बुरी तरह विफल रही है। ऐसे में डीजल पैट्रोल और रसोई गैस के दाम में वृद्धि महंगाई से कराह रही जनता की और कमर तोेड़ने वाला फैसला ही साबित होगा।

रसोई गैस का दाम बढ़ाने का फैसला तो एकदम बेतुका है। इस पर भारी सब्सिडी तब से दी जा रही है जब गैस कनेक्षन की संख्या कम होती थी और आम आदमी लकड़ी, कोयला को ही अपनी रसोई में प्रयोग करता था। जाहिर है ऐसे में गैस कनेक्षन समर्थ और धनवान लोगों के पास ही होते थे। लेकिन उस समय तो भरपूर सब्सिडी दी जाती रही । आज जब आम आदमी रसोई गैस का प्रयोग करने लगा तो सरकार को सब्सिडी देने में परेषानी हो रही है।

तमाषा यह है कि वह फिक्की और चैंबर आॅफ काॅमर्स जैसी धन्ना सेठों की संस्थाएं रसोई गैस या किसानों को खाद पर मिलने वाली सब्सिडी के खिलाफ अभियान चलाती हैं, जो स्वनिर्मित फर्जी मंदी से निपटने के लिए सरकार से उद्योग जगत के लिए सब्सिडी और आर्थिक पैकेज की मांग करती हैं। इसी तरह बिल्डर्स और काॅलोनाइजर्स को भी सरकार से इसलिए मदद चाहिए क्योंकि उनका मुनाफा 400 प्रतिषत से घटकर 300 प्रतिषत रह गया है। अमरीका में अगर लीमन ब्रदर्स डूबता है तो उसे सरकार से आर्थिक मदद चाहिए। भारत में ‘सुभिक्षा’ डूबता है तो उसे भी सरकार से 500 करोड़ रूपये की मदद चाहिए। रामलिंगम राजू फ्राॅड करंे तो सत्यम को बचाने के लिए भी सरकार से बीस हजार करोड़ रूपये की मांग होती है लेकिन आम गरीब आदमी को रसोई गैस पर सौ रूपये की सब्सिडी पर हाय तौबा मच जाती है।

यहां महत्वपूर्ण पहलू यह है कि रसोई गैस पर दी जा रही सब्सिडी की कुल राषि अकेले एक स्पेषल आर्थिक जोन- सेज को मिल रही रियायतों के मुकाबले काफी कम लगभग दसवां हिस्सा ही बैठती है। जबकि इन सेज के निर्माण से आम आदमी को क्या लाभ हुआ है? सरकार ने उत्तराखण्ड और हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेषों में उद्योग लगाने के लिए उद्योगपतियों को दस वर्श के लिए करों में विषेश छूट दी। जिसका परिणाम यह निकला कि नये उद्योग तो नहीं लगे बल्कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेष के उद्योग उखड़कर इन प्रदेषों में चले गए और करों में मिल रही छूट का फायदा उठा रहे हैं। लेकिन आम आदमी को अपने उत्पाद सस्ते करके उन्होंने इस लाभ को षेयर नहीं किया। फिर इन उद्योगों को किसलिए करों में छूट देकर राजकोश को चूना लगाया गया? तब फिक्की और चैंबर आॅफ काॅमर्स को दर्द क्यों नहीं हुआ?

इसी तरह चीनी की बढ़ती कीमतें रोकने के नाम पर चीनी मिल मालिकों को कच्ची चीनी की प्रोसेंिसग पर करों में छूट सहित बहुत सी रियायतें दी गईं। लेकिन नतीजा क्या निकला? चीनी के दाम तो यथावत रहे लेकिन चीनी मिल मालिको के वारे न्यारे हो गए।

इसलिए सब्सिडी समाप्त करके डीजल, पैट्रोल और रसोई गैस के दाम बढ़ाया जाना षुद्ध रूप से जनविरोधी फैसला है और अफसोस इस बात का है कि सत्ता पक्ष और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी इस जनविरोधी कृत्य पर एक सी ही सोच के हैं जिसके चलते लोकतंत्र के विशय में मुहावरा कि जनता का षासन जनता के द्वारा जनता के लिए बेमानी होता जा रहा है।

डेली न्यूज़ जयपुर में प्रकाशित 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच इससे आम आदमी बुरी तरह प्रभावित होते हैं !!

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  2. Bahut achhi post. Vastav mein janata ka shasan to naambhar ka hi...baaki sab to rajniti ka khel bankar rah gaya hai... Janta ko jagruk karne ke prayas nirantar jaari rakhne ki jarurat hai.. bus saman vichardhar ke log yadi aise hi aawaj uthate rahe....
    Mahashivratri ki hardik shubhkamnayne.

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