बुधवार, 5 मई 2010

सड़क पर दुष्मन संसद में यार

सड़क पर दुष्मन संसद में यार


अमलेन्दु उपाध्याय

अकसर कहा जाता है कि राजनीति में दो ओर दो चार नहीं होते हैं और राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं हैं और जो होता है वह दिखता नहीं है। इन कहावतों को एक बार फिर मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और मायावती ने विपक्ष के कटौती प्रस्ताव पर कांग्रेस का दामन थाम कर सही साबित कर दिया है। अभी कुल जमा चार दिन भी तो नहीं बीते हैं जब डॉ. अम्बेडकर के जन्म दिवस पर कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी में उत्तर प्रदेष में जमकर युद्ध हुआ था और कांग्रेस के इतिहास की पुस्तक में डॉ. अम्बेडकर का जिक्र न होने और अम्बेडकर जयंती के कांग्रेसी पोस्टर पर अम्बेडकर का चित्र न होने पर बसपा ने कांग्रेस पर हमला बोला था।

उधर मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और लालू प्रसाद यादव का कुनबा राश्ट्रीय जनता दल, न केवल महिला आरक्षण बिल पर किसी भी हद तक कांग्रेस के खिलाफ जाने पर आमादा थे बल्कि 27 अप्रैल को ही वामपंथी दलों द्वारा आहूत भारत बन्द में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे, वही सपा और राजद भी ठीक उसी दिन 27 अर्पैल को लोकसभा के अन्दर कांग्रेस के तारणहार बन बैठे। यानी सड़क पर कांग्रेस के विरोध में और सदन में कांग्रेस के एजेन्ट। इससे भी ज्यादा आष्चर्य इस बात पर है कि मायावती और मुलायम सिंह की रंजिष किसी से छिपी नहीं है। दोनों एक म्यान में दो तलवार की तरह साथ नहीं रह सकते। लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार बचाने के लिए दोनों को एक प्लेटफार्म पर आने से भी कोई एतराज नहीं रहा। माया मुलायम का ऐसा प्रेम भाव किसी समीकरण की वजह से नहीं है। बल्कि इसके पीछे दोनों के अपने अपने भय हैं और इस कदम के पीछे सबसे बड़ा कारक सीबीआई है।

याद होगा आईपीएल धोटाले की गूंज जब जोर षोर से हो रही थी ठीक उसी समय मायावती ने एक बहुत ही मार्मिक बयान दिया था कि सबको छोड़कर सीबीआई उनके पीछे ही पड़ी है। ठीक है कि मायावती ने आर्थिक गड़बड़ियां की हैं, लेकिन यूपीए सरकार के जो छह मंत्री आईपीएल घोटाले की जद में आ रहे थे उन पर सरकार की खामोषी न केवल मायावती के आरोपों को सही साबित करती है बल्कि कटौती प्रस्ताव पर लोकसभा में कांग्रेस के समर्थन के असल कारण को भी बिन बोले बयां कर देती है।

इसी तरह याद होगा लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का मायावती को धमकाने वाला बयान कि कांग्रेस के पास सीबीआई है काफी चर्चा में रहा था और उसके बाद देखने में आया कि जब जब मायावती ने कांग्रेस से पंगा लेने की या उसके षिकंजे से निकलने की जुर्रत करने की हिमाकत की सीबीआई का डंडा मायावती पर चलने लगा।

लालू प्रसाद यादव तो खैर हमेषा से सीबीआई के निषाने पर रहे हैं और कभी अपनों तो कभी गैरों के द्वारा सीबीआई से प्रताड़ित होते रहे हैं। जाहिर है कि जब लोकसभा में उनकी ताकत कम हो गई है औॅर कुछ महीनों बाद ही बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है, ऐसे में भला क्यों लालू प्रसाद यादव कांग्रेस से पंगा लेकर अपने और अपने परिजनों के लिए मुसीबत खड़ा करना चाहेंगे? कुछ दिन पहले ही वह झारखण्ड में कांग्रेस का सीबीआई का तुरुप का पत्ता मधु कोड़ा पर चलते हुए देख ही चुके हैं।

लालू और माया जैसी ही कुछ मजबूरियां मुलायम सिंह की भी हैं। अपने अन्तःकरण से तो मुलायम सिंह कांग्रेस से दो हाथ करना भी चाहते हैं लेकिन सीबीआई का खौफ उन्हें भी पीछे धकेल देता है। मुलायम और उनके परिजनों के खिलाफ एक कांग्रेसी नेता विष्वनाथ चतुर्वेदी उर्फ मोहन की एक षिकायत पर आय से अधिक संपत्ति का मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। मजेदार बात यह है कि सीबीआई ने ही उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी लेकिन यूपीए पार्ट वन सरकार बचाने के लिए जिस तत्परता से मुलायम सिंह आगे आए उसका इनाम देते हुए वही सीबीआई कहने लगी कि अब मुकदमा चलाने की आवष्यकता नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि बताया तो जाता है कि षिकायतकर्ता कांग्रेसी नेता विष्वनाथ चतुर्वेदी उर्फ मोहन उस दिन के बाद से अदालत ही नहीं पहुंचे हैं। अब अगर मुलायम सिंह कटौती प्रस्ताव पर कांग्रेस के खिलाफ मत दे देते तो सीबीआई को अदालत में यह कहने कि मुकदमा चलाने की जरूरत है और मोहन को अदालत में उपस्थित होने में कितना समय लगता, यह मुलायम सिंह अच्छी तरह जानते हैं। मुलायम सिंह पर ऐसे दबाव हैं। इसका पता उनके पुराने सखा रहे अमर सिंह की एक धमकी से चलता है। अभी कुछ दिन पहले अमर सिंह ने बयान दिया था कि यदि मुलायम के सिपहसालारों ने उनके (अमर) ऊपर हमले बन्द नहीं किए तो वह आय से अधिक संपत्ति के मामले में स्वयं अदालत पहुंचकर जांच मेें सहयोग करेंगे। देखने में आया कि इस बयान के बाद अमर सिंह के खिलाफ सपा नेताओं ने बोलना बन्द कर दिया। इसका मतलब है कि सीबीआई का कुछ न कुछ मामला है जरूर।

ल्ेाकिन उत्तर प्रदेष की जंग में इस घटनाक्रम का सबसे ज्यादा फायदा मुलायम सिंह को पहुंचा और केन्द्र में मनमोहन सरकार बचा ले जाने के बावजूद यूपी में सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस को हुआ। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मुलायम सिंह की कुछ बड़ी गल्तियों का साीधा लाभ कांग्रेस को पहुंचा था और वह यूपी में एक बड़ी ताकत बनकर उभरी थी। उसके बाद प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोषी के मायावती के खिलाफ आग उगलते बयान ने कांग्रेस का ग्राफ काफी ऊंचा उठा दिया था जिसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस प्रत्याषी राज बब्बर फिरोजाबाद के उपचुनाव में मुलायम की पुत्रवधु को हराकर जीत गए। मायावती से रोज रोज की तू-तू, मैं-मैं से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में एक जोष आ गया था और राहुल बाबा के दलितों के धर जाकर भोजन करने की नौटंकी भी कुछ कमाल करती दिख रही थी और कांग्रेस का मिषन 2012 भी कुछ सफल होता दिख रहा था। लेकिन मनमोहन सरकार बचाने के लिए की गई कांग्रेसी जुगलबन्दी ने यूपी में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की कमर तोड़ कर रख दी। उन्हें लग रहा है कि सड़क पर तो कांग्रेसी नेतृत्व कार्यकताओं को मायावती की पुलिस की लाठियों से पिटवा रहा है और खुद दिल्ली में बैठकर मायावती की चिरौरी कर रहा हेै

कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की इसी उधेड़बुन का सर्वाधिक फायदा मुलायम सिंह को हुआ है। मायावती और कांग्रेस की तकरार से समाजवादी पार्टी बैकफुट पर जाने लगी थी और मायावती के विरोध के लोग कांग्रेस के साथ गोलबन्द होने लगे थे। लेकिन अब इस तबके का तेजी से कांग्रेस से मोहभंग होने लगा है और उसे लगने लगा है कि मायावती से लड़ाई तो मुलायम सिंह ही लड़ सकते हैं। इधर सपा ने भी 27 अप्रैल को भले ही भारत बन्द का नारा महंगाई और कांग्रेस के विरोध में दिया हो लेकिन सड़कों पर जिस तरह उसके कार्यकर्ता उतरे उन्होंने टारगेट कांग्रेस को कम और मायावती और राज्य सरकार को ही ज्यादा बनाया। नतीजतन बैकफुट पर जा रही सपा एक बार फिर फ्रन्टफुट पर आ गई और कांग्रेस अपने किए पर पछताने के लिए नेपथ्य में चली गई। भले ही कांग्रेसी इस बात पर खुष हो रहे हों कि उन्होंने विपक्ष के दांव को विफल करते हुए मनमोहन सिंह की सरकार बचा ली लेकिन यूपी की जंग में कांग्रेस ने जो खोया है उसकी भरपााई आने वाले बीस सालों में भी मुष्किल है। कांग्रेस ने यूपी में न केवल अपने कार्यकर्ताओं के अरमानों का गला धोटा है बल्कि रीता जोषी और दिग्विजय सिंह की मेहनत पर भी पानी फेर दिया है। अब राहुल बाबा चाहे कलावती के धर जाएं या जलवर्शा के उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

1 टिप्पणी:

  1. आम जनता असली है बाकि सब नकली है / ये ऐसे व्यक्ति हैं जिनको सिर्फ अपनी चिंता है / जनहित से इनका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं /

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