शनिवार, 8 मई 2010

फायदे से ज्यादा होगा नुकसान

फायदे से ज्यादा होगा नुकसान
अमलेंदु उपाध्याय


वर्श 2011 में होने वाली जनगणना के लिए जाति को भी आधार बनाए जाने के सवाल पर प्रमुख विपक्षी दल और सत्तारूढ़ दल उलझे हुए हैं। जहां जाति को आधार बनाए जाने की मांग करने वालों के अपने तर्क हैं तो वहीं इसकी खिलाफत करने वालों के भी अपने तर्क हैं लेकिन मजेदार बात यह है कि जाति के आधार पर जनगणना की मांग करने वाले लोग उन डाॅ. राम मनोहर लोहिया के षिश्य और वारिस होने का दावा करते हैं जिन डाॅ लोहिया ने ‘जाति तोड़ो - दाम बांधो’ का नारा दिया था।

हालांकि अगर जनगणना में जाति को भी एक आधार बना लिया जाएगा तो तैयारियों के लिहाज से कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। लेकिन खुद सरकार के बड़े लोग इस मसले पर आपस में उलझे हुए लगते हैं। बताया जाता है कि कैबिनेट की बैठक में ही मंत्रीगण आपस में इस मसले पर बुरी तरह उलझ गए। जबकि भारतीय जनता पार्टी को इस बहाने आरएसएस का एजेंडा सदन में लागू करने और देषभक्ति के प्रमाणपत्र बांटने का अच्छा मौका हाथ लग गया। लेकिन इससे असल मुद्दा पीछे छूट गया।

वैसे समाजवादी धड़े से नाइत्तेफाकियों के बावजूद उनके तर्क में कुछ असर भी है। मसलन जब जनगणना में बहुत सी बेवजह बातों को भी पूछा जाता है तो जाति पूछने में हर्ज ही क्या है? एक समाजवादी नेता ने व्यक्तिगत बातचीत में कहा कि ‘कांग्रेस को इसमें परेषानी क्या है? यही कि पिछड़े तबके के लोगों को अपनी वस्तुस्थिति मालूम पड़ जाएगी और वह राजनीति और नौकरियों में अपनी ज्यादा हिस्सेदारी मांगेंगे?’ तर्क है जानदार। क्योंकि जाति की गणना होने पर नुकसान सवर्णाें को हो सकता है और देष भर में यह मांग उठ सकती है कि जब इनकी आबादी कम है तो यह नौकरियों में ज्यादा क्यों हैं,? यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों अन्दरूनी तौर पर जाति की गणना कराए जाने के खिलाफ हैं क्योंकि दोनों ही दलों का नेतृत्व सवर्ण है और जो पिछड़ा और दलित नेतृत्व उनके यहां है भी तो वह केवल षो पीस है, निर्णय ले सकने की स्थिति में नहीं है।

हां जाति आधारित जनगणना का एक लाभ जरूर मिल सकता है। अभी हर जाति अपनी तादाद अपने हिसाब से बताती है और नौकरियों और राजनीति में हिस्सेदारी मांगती है। तब इस रंगदारी में थोड़ा फर्क पड़ेगा और यह बात साबित हो जाएगी कि पिछड़े तबके की जातियों के लोग 52 प्रतिषत हैं भी या नहीं।

लेकिन अगर निहित राजनीतिक स्वार्थों को छोड़कर बात की जाए तो जाति आधारित जनगणना के बहुत से दूरगामी दुश्परिणाम होंगे। पहली बात तो भारतीय समाज वैसे ही धोर जातिवादी है और हर जाति खुद को दूसरे से श्रेश्ठ साबित करने पर जुटी रहती है। ऐसी जनगणना से जाति के बंधन और मजबूत होंगे। जिस जाति प्रथा को तोड़ने और समाज में समरसता लाने की हवाई बातें बार बार की जाती हैं तब तो वह हवाई बातें भी होना बन्द हो जाएंगी। फिर हिन्दुओं में ही लगभग चार हजार जातियां हैं। इसके बाद हर जाति में किरोणीमल बैंसला और किरोड़ी लाल मीणा पैदा हो जाएंगे जो देष को चैन से नहीं बैठने देंगे। अभी तो बिहार में दलितों में महादलित और पिछड़ों में अति पिछड़े ही छांटे जा रहे हैं, तब हर जाति खुद को महादलित और लुप्तप्राय प्रजाति साबित करते हुए अधिक संरक्षण की मांग करेगी। जिसका दुश्परिणाम यह होगा कि देष का विकास और आर्थिक उन्नति की बातें पीछे छूट जाएंगी और जातिगत समीकरणों के लिहाज से ही महत्वपूर्ण फैसले होने लगेंगे।

इसका जो सबसे बड़ा खतरा है वह यह है कि राश्ट्रीय भावना का एकदम लोप हो जाएगा और राजनेता राश्ट्रहित की बातें न सोचकर जातिहित की ही बातें करने लगेंगेे। ऐसा स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन के दौरान हो भी चुका है। इतिहास साक्षी है कि डाॅ भीमराव अम्बेडकर ने अंगेजों से कहा था कि वह देष छोड़कर तब तक न जाएं जब तक कि दलितों को हिन्दुओं के षोशण से मुक्ति न मिल जाए। और इस बहाने अंग्रेज इस देष में चैथाई सदी तक ज्यादा रुके रहे। जिसका खमियाजा हमने देष विभाजन के रूप में भी देखा और देष को जबर्दस्त नुकसान उठाने पड़े। अगर समाजवादी धड़ा इस बात की गारंटी दे कि इस तरह का कोई दुरूपयोग इस जनगणना का नहीं होगा तो जाति आधारित जनगणना भी कराई जा सकती है अन्यथा इसका फायदा तो बहुत कम होगा और देष को नुकसान बहुत बड़ा होगा ।


इस बहाने अंग्रेज इस देश में चौथाई सदी तक ज्यादा रूके रहे, जिसका खमियाजा हमने देश विभाजन के रूप में भी देखा और देश को जबरदस्त नुकसान उठाने पड़े। अगर समाजवादी धड़ा इस बात की गारंटी दे कि इस तरह का कोई दुरूपयोग इस जनगणना का नहीं होगा, तो जाति आधारित जनगणना भी कराई जा सकती है, अन्यथा इसका फायदा तो बहुत कम होगा। देश को नुकसान बहुत बड़ा होगा।

1 टिप्पणी:

  1. उपाध्याय जी आपका अच्छा लगा. ये गधे नेता अपने लाभ के लिए ही जाती आधारित जनगणना करवाना चाहते हैं.कृपया लेख में हुयीं कुछ भाषाई अशुद्धुयों की ओर ध्यान अवश्य दें...

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