रविवार, 21 दिसंबर 2008

रामशरण दास: एक समाजवादी संत का अवसान




रामशरण दास: एक समाजवादी संत का अवसान


अपनी बेलाग और मुंहफट टिप्पणियों के लिए पहचाने जाने वाले खांटी समाजवादी नेता रामशरण दास अब नहीं रहे। विगत तीन वर्ष में लखनऊ प्रवास के दौरान उनसे लगभग रोज ही मुलाकात रहती थी। इधर लगभग एक वर्ष से वे अस्वस्थ थे और आखिर में तो संज्ञा शून्य से हो गए थे। स्व. राजनारायण और रामशरण दास के साथ एक लंबा वक्ता गुजारने वाले समाजवादी नेता उमाशंकर चौधरी ने काफी पहले बताया था कि अधयक्ष जी का मस्तिष्क सिकुड़ गया है। ?रामशरण दास उस सियासी जमात के आखरी लोगों में थे जिन्होंने देश और समाज की बेलौस खिदमत की लेकिन अपने लिए एक अदद आशियाना भी न बना सके। उनका निधन केवल समाजवादी पार्टी की क्षति नहीं है बल्कि मूल्यों की राजनीति करने वाले आंदोलन की अपूर्णीय क्षति है। रामशरण दास, रफी अहमद किदवई, जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव, राजनारायण, सीताराम केसरी जैसे नेताओं की कड़ी में थे जिनका नाम लेकर तो तमाम लोग सत्ताा और दौलत के शिखर पर पहुंच गए, परंतु जो स्वयं अपने या अपने परिवार के लिए कुछ नहीं कर पाए। 2006 में जब विधान परिषद सदस्यों का चुनाव होना था, किसी ने अधयक्ष जी से कह दिया कि बलराम यादव (पूर्वांचल के मिनी मुलायम) ने सुझाव दिया है कि अधयक्ष जी अब बुजुर्ग हो गए हैं और इस बार उनके पुत्र जगपाल को विधान परिषद भेज दिया जाए ताकि अधयक्ष जी के सामने ही उनका पुत्र स्थापित हो जाए। कोई और राजनेता होता तो बलराम के सुझाव पर जमकर गोटें बिछाता लेकिन अधयक्ष जी तो अधयक्ष जी थे सो उखड़ गए और कहने लगे कि बलराम तो मेरा दुश्मन निकला। मेरी जिंदगी भर की राजनीति पर पानी फेरना चाहता है। जगपाल को सदन में जाना है तो काम करे, चुनाव लड़े, रामशरण दास का लड़का होने की वजह से विधान परिषद में नहीं जाएंगे। ऐसा चरित्र कितने सियासी लोगों में है? अधयक्ष जी का लखनऊ का घर समाजवादी आंदोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का स्थायी रैन बसेरा था। जिसे कहीं जगह नहीं उसका सहारा अधयक्ष जी। समाजवादी पार्टी के स्थापना के दिन से ही प्रदेश? अधयक्ष बने लेकिन मरते दम तक गाड़ी तो दूर साइकिल भी न खरीद पाए। सरकार में हुए तो सरकारी गाड़ी, नहीं हुए तो पार्टी ने गाड़ी दे दी वरना अपने किसी एक सेवक को साथ लिया और रिक्शे पर चल दिए। कोई बनावट नहीं, कोई दिखावा नहीं। जैसे हैं सामने हैं।? कब किसे क्या कह दें भरोसा नहीं। लेकिन जो कहेंगे सो सोलह आना सच। एक दिन अपने घर पर टिकटार्थ्ाियों और कार्यकर्ताओं से घिरे बैठे थे। एक कार्यकर्ता बोला- 'अधयक्ष जी आप देखिए न कार्यकर्ताओं के साथ टिकट में नाइंसाफी हो रही है, आप दखल दीजिए ना।' एक मिनट चुप रहे फिर बोले तो बेसुरा लेकिन कड़वा सच। बोले-'देखो किसी की नहीं चल रही है। सब अमर सिंह के यहां से तय हो रहा है। शिवपाल सबसे ज्यादा काम करते हैं, लेकिन उनके कंधे पर रखकर बंदूक चलाई जा रही है।' फिर समझाने लगे- ''हमारे देहात में 'टपका' कहलाता है, पका हुआ आम जो पेड़ से टपक जाता है। ये 'टपका' साबित होंगे और बाद में बदनाम शिवपाल को करेंगे।'' चुनाव बाद अधयक्ष जी का कहा सच साबित हुआ। सपा 'टपका' साबित हुई और हार का ठीकरा सबने शिवपाल के ऊपर ही फोड़ा। अधयक्ष जी जिसके खिलाफ हो जाएं, उसे कहीं न बख्शें। विधाान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अहमद हसन से महज इसलिए नाराज क्योंकि? हसन पुलिस अफसर रहे थे और अधयक्ष जी जब मंत्री होते थे तब कहीं हसन ने बतौर पुलिस अफसर उन्हें सैल्यूट किया था। सो जब मौका लगे तो कहें हमारा नेता पॉलिटिकल नहीं है पुलिस वाला है। पर अधयक्ष जी जिसे चाहें दिलोजान से चाहें। विधान भवन में अपने दफ्तर पहुंचें तो सबसे पहले लल्लन प्रसाद यादव और नरेश उत्ताम (दोनों एमएलसी) को याद करें। विधान परिषद की बैठक चल रही थी। अधयक्ष जी अपने कमरे में आए तो राकेश सिंह राना पर खासे नाराज। कहें कि ये जो अपना विद्यार्थी नेता है एमएलसी राकेश राना इसे अकल नहीं है। मालूम पड़ा कि शिक्षा पर कोई बहस चल रही थी और भाजपा नेता नेपाल सिंह और राकेश राना बहस कर रहे थे। और अधयक्ष जी राना से कह रहे थे कि इनसे उर्दू पर इनके विचार पूछो। राना ने कहा कि अधयक्ष जी बहस तो दूसरे विषय पर थी। पर अधयक्ष जी की दलील देखें, बोले- 'तुम उसे उर्दू पर घेरते उसका संघी दिमाग घूम जाता और बहस की दिशा बदल जाती।' अब बताइए कितनी लंबी सोच! अधयक्ष जी आरएसएस के घनघोर विरोधी थे लेकिन शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब वरिष्ठ पत्रकार जे.पी. शुक्ला (जो संघ की विचारधारा से प्रभावित बताए जाते हैं) से अपने दिल का हाल न बताते हों। व्यक्तिगत जीवन में अधयक्ष जी ने कभी राजनैतिक विचारधारा को संबंधों के बीच दीवार नहीं बनने दिया। पूर्व मंत्री अखिलेश दास के लिए उनके मन में हमेशा एक सॉफ्ट कार्नर रहा चूंकि श्री दास बनारसी दास के बेटे हैं। अधयक्ष जी खांटी समाजवादी थे सो सारे समाजवादियों वाले अवगुण भी मौजूद थे। जिंदगी भर व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष और जब किसी के खिलाफ संघर्ष न हो तो अपनों के खिलाफ ही संघर्ष। कभी मधुकर दिघे निशाने पर तो कभी रजनीकांत वर्मा निशाने पर। पिछले वर्ष ही मेरठ में सपा का प्रादेशिक सम्मेलन था। लोग सोच रहे थे कि अधयक्ष जी बीमार हैं सो नया अधयक्ष बनेगा। अधयक्ष जी ने मीडिया के लोगों से कह दिया कि कुछ लोगों ने नए कुर्ते सिलवा लिए हैं। सम्मेलन के बाद लगे बताने कि जनेश्वर मिश्रा ने भगवती सिंह के लिए नया कुर्ता सिलवाया था। अब अधयक्ष जी की बात का मतलब आप स्वयं समझ लें। महिलाओं से गजब का प्रेम रखते थे अधयक्ष जी। कितनी गंभीर चर्चा चल रही हो, आप कितने ही महत्तवपूर्ण और नाम वाले व्यक्ति हों लेकिन अगर कोई महिला अधयक्ष जी से मिलने आ जाए तो तुरंत अधयक्ष जी का हुक्म होता था- 'आप चलें फिर बात करेंगे।' बलवीर सिंह 'रंग' ने कभी कहा था- 'जिनको दोहराएगी महफिल/ऐसे अफसाने हैं हम।' रामशरण दास ऐसा ही अफसाना थे जिन्हें समाजवादी आंदोलन बार-बार दोहराएगा। मुलायम सिंह यादव के इस कथन में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि रामशरण दास जैसा ईमानदार, निष्ठावान और कर्मठ नेता अब कहां मिलेगा जिसने के लिए अपना सारा जीवन लगा

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