बुधवार, 21 जनवरी 2009

सत्यम के सत्य पर हैरानी क्यों है?

सत्यम, सरकार, मायावती और फर्जी बैलेंसशीट


अमलेन्दु उपाध्याय
मुझे बहन मायावती बहुत अच्छी लगती हैं। आप मेरी पसंद पर गुस्सा हो सकते हैं, मुझे खब्ती कह सकते हैं और जो चाहें सो पदवी से नवाज सकते हैं। लेकिन बात सौ फीसदी सही है कि बहन जी मुझे अच्छी लगती हैं। ऐसा वेवजह नहीं है। उसका कारण है - बहन जी की ईमानदारी। आज के इस युग में बहन मायावती ने ईमानदारी की मिसाल कायम की है। आप कह सकते हैं कि जब बहन जी के विधायक उनके जन्म दिन पर चंदा मांगने के लिए एक इंजीनियर को पीट पीट कर मार डालते हैं ऐसे में बहन जी को ईमानदार कैसे ठहराया जा सकता हैं? लेकिन बहन जी ईमानदार हैं इसका सुबूत यह है कि बहन जी ने जो भी संपत्ति पिछले डेढ़ दशक में रिश्वत से, जबरिया वसूली करके या ट्रांसफर पोस्टिंग करके अथवा अपनी पार्टी के टिकटों को बेचकर अर्जित की है उस पर ईमानदारी के साथ सरकार का टैक्स अदा किया है। वरना क्या आप किसी ऐसे राजनीतिज्ञ को जानते हैं कि वो बताए कि उसने १५ वर्षों में १०० करोड़ रुपए कमाए हैं और उस पर सरकार का टैक्स भी अदा किया है? शायद नहीं। बल्कि जब उच्चतम न्यायालय में हमारे राजनीतिज्ञों के आय से अधिक संपत्ति के मामले पहुंचते हैं तो वे गुहार लगाते हैं कि उनकी आईटीआर सार्वजनिक न की जाए। ठीक उसी तरह मुझे 'सत्यम` के रामलिंगम् राजू सत्य की प्रतिमूर्ति नजर आते हैं जिन्होंने ईमानदारी के साथ अपनी चोरी को न केवल सवीकार किया बल्कि यह भी बताया कि वे यह सब पिछले लगभग एक दशक से कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि राजू ने कोई नया अपराध किया है। यह कारनामे तो भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण ाुरु करने के बाद देश में पैदा हुए कारपोरेट घराने लगातार कर रहे हैं। क्या जरूरी है कि जो सत्यम ने किया वह रिलायंस, आईसीआईसीआई, विप्रो, सहारा, और स्टॉक एक्सचेंज में अधिसूचित अन्य कारपोरेट घराने नहीं कर रहे होंगे। अगर 'सत्यम` की करतूत के बाद हम इंफोसिस प्रमुख नारायणमूर्ति के बयान से पल भर को सहमत हो भी जाएं कि देश में सभी खराब कंपनियां नहीं हैं। तो राजू के रहस्योद्घाटन से पहले तो 'सत्यम` के वि ाय में भी किसने ऐसा सोचा था? 'सत्यम` का फर्जीवाड़ा इसलिए खुला क्योंकि राजू ने इसे स्वयं खोला, वरना जिस फर्जीवाड़े को राजू पिछले एक दशक से कर रहा था उसे न तो सेबी ने पकड़ा और न आरबीआई या आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग ने! राजू ने जो किया वह इस सट्टेबाजी वाली अमरीकी प्रेरणायुक्त मनमोहनी व्यवस्था में होना तयशुदा बात है जिसे मनमोहन और अटल जी अमरीका से आयात करके लाए हैं।
क्या राजू को इस अपराध की सजा मिलेगी? संभवत: नहीं क्योंकि सजा तो झूठ बोलने के लिए मिलती है न कि सच? राजू ने तो जो खुले आम स्वीकार किया है कि उसने यह फर्जीवाड़ा किया है? फिर उसे क्या सजा मिलेगी? जो सरकार आज राजू को सजा देने की बात कर रही है पहले तो उस सरकार को ही सजा मिलनी चाहिए जो इस फर्जीवाड़े को आज तक खुद नहीं खोल पाई। और जो काम राजू ने सत्यम की बैलेंस शीट में किया वह अपराध तो मनमोहन सिंह देश की बैलेंस शीट के साथ लगातार कर रहे हैं। पिछले पांच साल में एक लाख से अधिक किसान आत्महत्या करके मर चुके हैं, लेकिन मनमोहन की बैलेंस शीट में देश प्रगति कर रहा है, विकास दर दहाई को छू रही है, सेंसेक्स २०००० को छू रहा है। लेकिन यह विकास दर किसकी है? आम आदमी परेशान है, बेहाल है, देशी उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं, साजिशन सरकारी नौकरियां खत्म की जा रही हैं, लेकिन फिर भी अटल जी का इंडिया शाइनिंग करता है और मनमोहन सिंह का भारत 'अतुल्य` है? और दोष अकेले सत्यम का?
कायदे से तो 'सत्यम` को साधुवाद दिया जाना चाहिए और राजू से प्रेरणा लेकर हमारे उन ब्यूरोक्रेट्स, राजनेताओं, और कार्पोरेट घरानों को, ( जिनके कई हजार करोड़ रुपए स्विस बैंको में पड़े हैं और जो खरबों रुपए की टैक्स चोरी कर चुके हैं ) २००९ को 'सत्यम वर्ष` के रूप में स्वीकार करके अपने गुनाहों से तौबा करनी चाहिए। जैसा कि राजू ने स्वीकार किया है, ठीक उसी तरह से इस वर्ग को भी चाहिए कि वह घोषणा करे कि उसने अब तक कितनी रिश्वत ली है, कितनी टैक्स चोरी की है, कितने मजदूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं किया है। यदि ऐसा हो जाए तो इस मुल्क में गरीबी बीता हुआ सपना रह जाएगी।
सवाल यहां यह है कि 'सत्यम` के घोटाले के बाद भी क्या सरकार ने कोई सबक लिया है? क्या उन चार्टर्ड एकाउंटेन्ट्स को प्रतिबंधित किया गया जो अब तक 'सत्यम` के फर्जीवाड़े को अंजाम दे रहे थे? 'सत्यम` के खेल में अकेले राजू ही शामिल नहीं है। क्या सरकार यह हिम्मत जुटाएगी कि सत्यम का आडिट करने वाली 'प्राइस वाटर हाउस कूपर्स` ( पीडब्ल्यूसी) ने जिन जिन भारतीय कंपनियों के ऑडिट किए हैं, उनके ऑडिट की जाँच कराए? क्योंकि जो फर्जीवाड़ा पीडब्ल्यूसी ने सत्यम के लिए किया क्या ऐसा कारनामा उसने औरों के लिए नहीं किया होगा!
'सत्यम` मामले में हमारी सरकार ने तत्काल राहत कार्रवाई की। कमाल की बात यह है कि देश में एक लाख से अधिक किसान कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। सरकार को इन किसानों के कर्जमाफी का निर्णय लेने में साढ़े चार साल का समय लग गया लेकिन सत्यम को पैकेज देने की घोषणा करने में सरकार को चार दिन का भी समय नहीं लगा। एक तरफ तो मुनाफे में चल रही सरकारी क्षेत्र के नवरत्न सार्वजनिक उद्यमों (पी एस यू) को सरकार निजी हाथों को बेचने पर आमादा है दूसरी तरफ 'सत्यम` को गोद लेने के लिए तैयार! आखिर क्यों? क्या 'सत्यम` सरकारी कंपनी है या 'सामाजिक सरोकार वाली कंपनी है? फिर 'सत्यम` पर यह मेहरबानी क्यों?
सत्यम पर सरकार की मेहरबानी के दो कारण हैं। पहला पीडब्ल्यूसी सरकार की चहेती कंपनी है। यह वही कंपनी है जिसको दिल्ली में पानी को लेकर सरकार ने काम करने का जिम्मा सौंपा था और इसकी रिपोर्ट को लेकर खासा बवाल हुआ था। चूँकि इसकी पानी पर रिपोर्ट अमरीकी कंपनियों का हित साधने के लिए थी। अगर यह रिपोर्ट लागू हो जाती तो दिल्ली में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच जाती। बाद में खुलासा हुआ था कि इस संस्था को यह काम दिलाने के लिए विश्व बैंक ने भारत की नौकरशाही को यह आदेश दिया था और बाध्य किया था कि पानी का निजीकरण किया जाए। अब सूचना के अधिकार से रोज खुल रहे सरकारी भ्रष्टाचार के कारनामों से निजात पाने के लिए भी सरकार ने इस कानून की समीक्षा का काम इस कंपनी को सौंपा है। रिपोर्ट क्या आएगी आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं।
सरकार की मेहरबानी का दूसरा कारण यह है कि ५३००० लोगों की नौकरी दाँव पर लग गई है। हर रोज सरकारी नौकरियों को खत्म करने पर आमादा सरकार सत्यम के लोगों की नौकरी बचाने पर क्यों जुट गई, इसका कारण समझा जा सकता है। जिन लोगों की नौकरी पर खतरा बन आया है वे १०० रूपए रोज की मजदूरी करने वाले दिहाड़ी के मजदूर नहीं है। वे पचास हजार से लेकर दो लाख रूपये प्रतिमाह का वेतन पाने वाले च्चमध्यमवर्गीय लोग हैं। और इन ५३००० में से ३३००० तो थाने के दरोगा से लेकर आईएएस अफसरों और मंत्रियों तक के बेटे होंगे। बाकी २०००० में एक भी किसान या मजदूर का बेटा नहीं होगा। इसलिए सरकार की चिंता लाजिमी है। इस देश में ५ करोड़ ३० लाख लोग ऐसे हैं जिनकी रोजी रोटी पर हर रोज खतरा है लेकिन सरकार को इनकी तो चिंता नहीं होती है?
जिस सरकार के कार्यकाल में ७० से ज्यादा बम विस्फोट हुए हों वो पाकिस्तान पर तब हमलावर होती है जब हमला होटल ताज पर होता है और मरने वाले बड़े पूंजीपति होते हैं। लेकिन जब तक इन विस्फोटों में रिक्शे वाला ठेले वाला और राह चलता आम आदमी मरता रहता है, सरकार के लिए यह रोज का रूटीन होता है। इसलिए सत्यम पर सरकार की बेचैनी समझी जा सकती है।
'राजू` ने बैकुंठ एकादशी के दिन अपना अपराध स्वीकार किया। दक्षिण भारत में मान्यता है कि बैकुंठ एकादशी के दिन अपने गुनाहों को कुबूल कर लेने पर भगवान वि णु गुनाहों को माफ कर देते हैं। अत: इस वर्ष हमारे राजनेताओं , पूंजीपतियों और भ्रष्ट अफसरों को चाहिए कि वे राजू से प्रेरणा लेकर अपने गुनाहों को कुबूल करें।(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और एक पाक्षिक पत्रिका से संबद्ध हैं)

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्‍छी समीक्षा की गयी है इस आलेख में...बहुत जानकारी मिली।

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  2. MUJHE KAHNE ME BILKUL AASCHRYA NAHI KI...WAQUI LEKH JANKARIWO SE BHARA HUAA HAI...PAR AAPSE AGAR YE PRSN KIAA JAY KI KYA MAHAJ GUNAH KABOOL KAR LENE BHAR SE SAMADHAN HO JAYEGA?

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