शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

न्याय प्रणाली की विष्वसनीयता संकट

अमलेन्दु उपाधयाय
गाजियाबाद के पीएफ धोटाले के मुख्य अभियुक्त आशुतोष अस्थाना की मौत पर दो पंक्तियों में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है-'अंधोरों ने हमारे अंजुमन की आबरू रख ली/ न जाने कितने चेहरे रोशनी में आ गए होते।' दीपावली वाले दिन अस्थाना की गाजियाबाद की जिला जेल में रहस्यमय मौत हो गई थी। इससे पहले भी गाजियाबाद की जिला जेल में कई अन्य हाई प्रोफाइल केस के अभियुक्तों की रहस्यमय मौतें हो चुकी हैं। लेकिन आशुतोष अस्थाना की मौत समूची न्यायिक प्रणाली की विष्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है।

आशुतोष अस्थाना पीएफ घोटाले का मुख्य अभियुक्त था और अपने इकबालिया बयान में वह छत्ताीस न्यायाधीशों के नाम उगल चुका था कि इन न्यायाधीशों के सहयोग और आदेष से उसने इस घोटाले को अंजाम दिया था। बताया तो यह भी जा रहा है कि अस्थाना अदालत में कोई और इकबालिया बयान देने जा रहा था और सीबीआई भी फाइनल चार्जषीट लगाने जा रही थी लेकिन वह समय आता उससे पहले ही अस्थाना सीने में बहुत से राज छिपाए हुए इस दुनिया से रूखसत हो गया।

समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई है कि अस्थाना के परिवारवालों ने कहा है कि उन्होंने पुलिस को कम से कम दो बार ये सूचना दी थी कि अस्थाना को जान का खतरा है। परिवार वालों ने इस मामले की सीबीआई जांच करवाने की मांग भी की है। हालांकि गाजियाबाद के पुलिस अधाीक्षक का बयान भी सभी समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाषित हुआ है जिसमें उन्होंने इस बात से इंकार किया है कि अस्थाना ने अपनी जान को खतरा बताया था। यहां सवाल यह है कि अगर अस्थाना ने पुलिस से सुरक्षा की गुहार नहीं भी की थी तो क्या यह पुलिस का काम नहीं था कि इतने महत्वपूर्ण हाई प्रोफाइल केस के मुख्य अभियुक्त की सुरक्षा के इंतजामात किए जाते? आईजी जेल सुलखान सिंह ने एक निजी टीवी चैनल के सामने स्वीकार भी किया है कि पहले भी कोर्ट में पेशी के दौरान अस्थाना के साथ मारपीट की गई थी।

बताया जा रहा है कि आशुतोष अस्थाना से एक दिन पहले ही सीबीआई ने कई घंटे तक पूछताछ की थी और इसके एक दिन बाद उसकी मौत होना सवाल खड़े करती है। क्या इस पूछताछ में भी कुछ रहस्य छिपा हुआ है? यह भी कहा जा रहा है कि पिछले कई रोज से सीबीआई अधिकारी जेल में उससे पूछताछ कर रहे थे और अस्थाना अदालत में अपने बयान देने वाला था जिसमें कई बड़े नाम लपेटे में आने वाले थे। इससे पहले भी अपने बयान में वह तीन न्यायाधाीषों को लपेट चुका था। बताया जाता है कि अनुच्छेद 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयान में अस्थाना ने खुलासा किया था कि उसे पुलिस से छिपने में तीन न्यायाधीशों ने मदद की थी। अस्थाना को हाईकोर्ट के तीन न्यायधीशों ने भरोसा दिया था कि जांच पूरी होने के बाद वे मामले को देख लेगें। तीनों न्यायधीशों का नाम घोटाले से लाभ कमाने वालों की सूची में भी बताया जाता है।

यह केस कितना गम्भीर था इसी बात से समझा जा सकता है कि जाँच करने में सीबीआई के भी पसीने छूट गए। समझा जा सकता है कि जाँच टीम भी किस मानसिक दबाव से गुजर रही होगी कि उसे सर्वोच्च न्यायालयसे अपील करनी पड़ी कि घोटाले से संबंधित मामले की जांच दिल्ली में कराई जाए ताकि जांच एजेंसी को अपने मुख्यालय से जांच कराना सुविधाजनक हो। इतना ही नहीं उत्तार प्रदेष सरकार भी इस केस की सीबीआई जांच कराने से कन्नी काटती रही लेकिन जब गाजियाबाद बार एसोसिएशन के पूर्व अधयक्ष नाहर सिंह यादव ने मोर्चा खोला और अधिवक्ता एकजुट हुए तब सीबीआई जाँच बैठाई गई। स्वयं सर्वोच्च न्यायालयकी तीन बेंच में यह मुकदमा स्थानान्तरित हुआ और सुनवाई करने वाले विद्वान न्यायाधीशों पर पक्षपात करने के आरोप भी लगे।

अस्थाना का फ्रॉड का केस भी बहुत नाटकीय अंदाज में खुला। यह आम चर्चा है कि अस्थाना का गाजियाबाद की जिला कोर्ट में इतना रुतबा था कि सीजेएम और एडीजे स्तर के अधिाकारी भी उससे अनुमति लेकर उसके कमरे में दाखिल होते थे। और तुतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तो उसके कमरे में जूते बाहर उतारकर दाखिल होते थे। गाजियाबाद में किस जिला न्यायाधीश की नियुक्ति हो रही है यह अस्थाना को पहले से मालूम रहता था। जाहिर है एक क्लर्क का यह रूतबा बिना ऊपर के आशीर्वाद के नहीं बना होगा। उसका यह घोटाला पकड़ा भी नहीं जाता अगर वह एक ईमानदार महिला न्यायाधीश से न उलझा होता। चर्चा है कि अस्थाना सीबीआई की स्पेशल न्यायाधीश रमा जैन, जो उस समय नजारत की इंचार्ज भी थी से एक फर्जी बिल पास कराने पहुँचा। बतातें हैं कि रमा जैन ने वह बिल पास करने से मना कर दिया। इस पर अस्थाना ने उन्हें घुड़़की दी कि यह बिल तो पास होंगे ही लेकिन इंचार्ज बदल जाएगा और अगले दिन ही रमा जैन से वह चार्ज छिन गया। इस पर महिला न्यायाधीश ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से शिकायत की कि गाजियाबाद की अदालतों में कुछ ऐसा है जो गलत है। इस पर जैन को जाँच का जिम्मा मिला और उन्होंने आते ही एकाउन्ट्स और नजारत को सील किया फिर जब जाँच की तो अस्थाना का फर्जीवाड़ा सामने आया। तब रमा जैन ने स्वयं गाजियाबाद के थाना कविनगर में एफआईआर दर्ज कराई। यह वही रमा जैन हैं, जिन्होंने निठारी केस में पंधोर और कोली को फाँसी की सजा सुनाई थी।

अपनी गर्दन फँसती देखकर अस्थाना ने अदालत में सेक्शन 164 के तहत इकबालिया बयान दर्ज कराकर पोल खोल दी कि यह फर्जीवाड़ा तो वह न्यायाधीशों के सहयोग से कर रहा था और यह राशि भी न्यायाधीशों के ऊपर ही खर्च होती थी। उसने बाकायदा कई बिल भी उपलब्ध कराए जो उसके बयान की पुश्टि करते हैं।

भले ही आशुतोष अस्थाना की मौत स्वाभाविक रूप से हुई हो लेकिन अगर निश्पक्ष जांच न हुई, ऐसी जाँच जिसमें कोई न्यायिक अधिाकारी षामिल न हो, बल्कि कई संवैधनिक संस्थाओं के लोग शामिल हों, तो लोग भरोसा नहीं करेंगे। केस की गम्भीरता को देखकर लगता है कि अस्थाना की मौत एक रहस्य ही बनी रहेगी। इसीलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी मौत का कारण अभी तक सामने नहीं आया है। जिस केस में 36 बड़े न्यायाधीश फँस रहे हों, जिनमें से एक सर्वोच्च न्यायालयऔर ग्यारह हाई कोर्ट के न्यायाधीश हों, उस केस के मुख्य अभियुक्त की मौत से रहस्य से पर्दा इतनी आसानी से उठ भी कैसे सकता है? उप्र सरकार अस्थाना की मौत की जाँच की घोषणा कर चुकी है। लेकिन जाँच कौन करेगा? वही पुलिस, जिसके कप्तान साहब अस्थाना के इकबालिया बयान पर सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधीश से न्यायाधीशों से पूछताछ करने की अनुमति मांग रहे थे!

यह अभी भी रहस्य बना हुआ है कि अस्थाना की मौत कैसे हुई। बताया जाता है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है। जैसा कि संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि उसकी मौत जहर खाने से हुई तो सवाल ये है कि तो उसे जेल में जहर कहां से मिला। दूसरा बड़ा सवाल ये कि उसने ये जहर खुद खाया या फिर किसी ने उसे जबरन जहर खिलाया। अगर उसने खुद जहर खाया तो खुदकुशी की वजह क्या थी और उसने जहर खाने के बाद किसी से इसका जिक्र क्यों नहीं किया। इसलिए अगर यह संदेह सही है कि मौत जहर खाने से ही हुई तो निश्चित रूप से यह हत्या का मामला ही नजर आता है।
इस बीच सर्वोच्च न्यायालयने न्यायिक जाँच के आदेश दिए हैं। लेकिन संभवत: यह पहला अवसर है कि न्यायिक जाँच के निष्पक्ष होने पर ही संदेह व्यक्त किया जा रहा है। सवाल सिर्फ अस्थाना की मौत की निश्पक्ष जांच का नहीं है बल्कि पूरी की पूरी न्याय प्रणाली की विष्वसनीयता संकट में है। इसलिए जांच किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से ही होनी चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि जब पुलिस ने आरोपित न्यायाधीशों से पूछताछ करने की अनुमति मांगी तब मुख्य न्यायाधीश ने पुलिस से संभावित सवालों की सूची माँगी। इससे जनमानस में यह संदेष गया कि क्या मुल्क में दो कानून हैं? न्यायाधीशों के लिए एक और आम आदमी के लिए अलग?

अक्सर न्यायपालिका पर उंगलिया उठती रही हैं। मसलन सूचना के अधिकार की परिधि में न्यायाधीश साहब क्यों नहीं आते हैं? सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की क्या प्रक्रिया है? न्यायाधीश साहब की जवाबदेही किसके प्रति है इस देष के संविधान के प्रति, सरकार के प्रति या जनता के प्रति या किसी के प्रति नहीं?

एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑप्रेशन में कुछ सांसद रंगे हाथ रिश्वत लेते हुए पकड़े गए थे। लेकिन संसद ने एक स्वर से उन दागी सांसदों की सदस्यता रद्द करके बाहर का रास्ता दिखाया और अपनी विश्वसनीयता बचाकर एक नजीर पेश की। लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि अस्थाना ने जिन न्यायाधीशों के नाम अपने इकबालिया बयान में लिए वह अभी तक बदस्तूर न्यायिक काम निपटा रहे हैं और जो काम नहीं भी कर रहे हैं वह महज इसलिए क्योंकि वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इतना ही नहीं जिन तीन न्यायाधीशों के नाम अस्थाना ने अपने इकबालिया बयान में लिए थे कि किस तरह इन न्यायाधीशों ने उसे गिरफ्तारी से बचने में मदद की और छिपाया उन न्यायाधीशों के खिलाफ भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

भले ही कानून मंत्री वीरप्पा मोइली कह रहे हों कि अस्थाना की मौत से इस केस की जांच पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इतिहास बताता है कि अंजाम क्या होगा?

जिस तरह से न्यायाधीशों की संपत्तिा के मामले पर सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधाीष की पहल पर न्यायाधीशों ने स्वयं अपनी संपत्तिा सार्वजनिक करने का साहसिक निर्णय लिया था उसी तरह की नजीर पीएफ घोटाले में भी पेष की जानी चाहिए और उन न्यायाधीशों से सारा न्यायिक काम छीन लिया जाना चाहिए जिनके नाम अस्थाना ने अपने इकबालिया बयान में लिए थे। अस्थाना की मौत के बाद ऐसी निश्पक्षता का प्रदर्षन और जरूरी हो जाता है ताकि न्याय केवल हो ही नहीं बल्कि होता हुआ दिखाई भी दे। क्या ऐसा साहस दिखा पाएंगे मी लॉर्ड!!!!!!!!!!!

1 टिप्पणी:

  1. प्रणाम सर!
    आपकी लेखनी पर क्या कहूं? बस कहिये कि कैसे हैं आप?
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    अंतिम पढ़ाव पर- हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

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