शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

स्वाइन फ्लू का भारत पर हमला

यह खबर लिखे जाने तक इस फ्लू से मरने वालों की संख्या 17 हो चुकी है जबकि लगभग 1200 लोग अब तक इसकी चपेट में आ चुके हैं। दरअसल, स्वाइन फ्लू सुअरों में होने वाली सांस संबंधी एक अत्यंत संक्रामक बीमारी हैआमतौर पर यह बीमारी सुअरों में ही होती है लेकिन कई बार सुअर के सीधे सम्पर्क में आने पर यह मनुष्यों में भी फैल सकती है। बलगम और छींक के सहारे यह मनुष्य से मनुष्य में फैल सकती है। स्वाइन फ्लू से दुनिया भर में करीब 1 .62 लाख लोग प्रभावित हो चुके हैं। स्वाइन फ्लू से 7 मौतें होने के बाद प्राानमंत्री कार्यालय भी हरकत में आ गया। अब हालात पर उसकी सीधी नजर रहेगी। अभी तक निजी क्षेत्र के अस्पतालों को इस इलाज से दूर रख रही सरकार ने अब इस वाइरस एच-1एन-1 की जांच के लिए निजी अस्पतालों को शामिल करने की भी तैयारी कर ली है।

स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने मंत्रालय की बैठक के बाद पत्रकारों को बताया कि सरकार अतिरिक्त 22,000 टेस्टिंग किट और दो करोड़ टैमीफ्लू टेबलेट आयात करेगी। आजाद ने कहा कि अमेरिकी कंपनी के किट काफी महंगे हैं इसलिए आईएमए इस तरह के किट विकसित करने पर काम कर रही है जिससे किट की लागत कम होगी। समझा जाता है कि स्वाइन फ्लू के फैलने का एक कारण सरकार की उदासीनता और निष्क्रियता भी है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी चेतावनी 5 अप्रैल को ही दे दी थी।

'वाशिंगटन पोस्ट' ने वांडर बिल्ट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में इंफ्लूएंजा विशेषज्ञ विलियम स्कारफनर के हवाले से अप्रैल के शुरुआती हफ्ते में ही बताया था कि स्वाइन फ्लू का नया प्रकोप भारत समेत गरीब देशों को अपनी चपेट में ले सकता है। लेकिन इस चेतावनी का भारत सरकार पर कोई असर नहीं हुआ और सरकार ने इससे निपटने के लिएर् कारगर उपाय नहीं किए। स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद की कार्यप्रणाली इस समय देशवासियों के निशाने पर है।

आजाद के एक बयान से समझा जा सकता है कि सरकार स्वाइन फ्लू को लेकर कितनी सतर्क और सजग थी। बताया जाता है। कि आजाद ने एक-न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि दो चार मौतों से दहशत नहीं फैलती, और मुल्कों में तो एक दिन में एक लाख लोगों को स्वाइन फ्लू फैला। स्वास्थ्य मंत्री के इस गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अभी इस फ्लू के और फैलने का इंतजार कर रहे

राह भटके योग के ब्राण्ड रामदेव

राह भटके योग के ब्राण्ड रामदेव

- अमलेन्दु उपाध्याय -
२०१४ बहुत नजदीक है, जिसके चलते योग गुरू कहलाए जाने वाले बाबा रामदेव बहुत जल्दी में हैं। चूंकि साढे चार साल का समय बचा है और देश बहुत बडा है। इसीलिए बाबा रामदेव जल्दबाजी में आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त ”ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या“ को भारत की सदियों की गुलामी का कारण बता रहे हैं, शास्त्रों में लिखी संन्यास की परिभाषा को गलत बता रहे हैं, भ्रष्टाचारियों की जमात में लालू प्रसाद यादव का नाम लेने पर कुपित हो रहे हैं, उन्हें अपने असली नाम ’रामकृष्ण यादव‘ के नाम से पुकारे जाने पर भी आपत्ति है और वह अभिनेत्रियों को वेश्या बता रहे हैं।

बबा रामदेव पिछली दस अगस्त को नौएडा में थे। साप्ताहिक समाचार पत्र ’दि संडे पोस्ट‘ के कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम ’टॉक ऑन टेबल‘ में उन्होंने शिरकत की और अपने एजेन्डे पर खुलकर बोले। रौ में बोलते हुए बाबा कह गए कि ”शास्त्रों में संन्यास की परिभाषा ही गलत लिखी है।’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ वैसा संन्यास नहीं है।“ बाबा इतने पर ही नहीं रूके। जब ’नई दुनिया‘ के राजनीतिक संपादक विनोद अग्निहोत्री ने उनसे पूछना चाहा कि ” यह जो ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ का सिद्धान्त दिया गया…“ तो उनका प्रश्न पूरा सुने बिना बात बीच में ही काट कर बाबा बोले- ”इसी ने देश का बहुत नुकसान किया है। आज भारत का जो आघ्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षरण हुआ है, वह इसी से हुआ है। सात्विक लोगों ने ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ कहकर जैविक संसाधनों का संचय नहीं किया। अधर्म, असत्य, अन्याय, शोषण, अपराध, दुराचार, व्यभिचार का विरोध नहीं किया। हम ठीक हैं तो , बाकी चीजों से हमें क्या लेना देना। इस दर्शन ने भारत को सदियों की गुलामी की तरफ ढकेल दिया।“

जब अगले दिन एक समाचार पत्र में यह खबर छपी कि बाबा रामदेव ने आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त को चुनौती दी, तो बखेडा खडा होने पर बाबा ने कह दिया कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा। लेकिन ’दि संडे पोस्ट‘ ने पूरी बात अक्षरशः प्रकाशित कर दी। अब बाबा के पास कहने को क्या है?

अब बाबा से प्रश्न पूछा जा सकता है कि अगर ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ सिद्धान्त गलत है और शास्त्रों में लिखी हुई संन्यास की परिभाषा गलत है तब बाबा रामदेव संन्यासियों की वर्दी भगवा कपडे पहने क्यों घूम रहे हैं? क्या बाबा को जो मान सम्मान, धन देश भर से मिल रहा है वह एक संन्यासी होने के कारण नहीं मिल रहा है? और अगर बाबा संन्यास के लिए घर-बार छोडना जरूरी नहीं मानते हैं तो उन्हें उनके असली नाम ’रामकृष्ण यादव‘ पुकारे जाने पर आपत्ति क्यों है और क्यों उन्होंने अपना घर-बार छोडकर संन्यासियों की परंपरा के अनुसार बाबा शंकरदेव से दीक्षा क्यों ली?

बाबा रामदेव योग के जरिए तनाव, ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज, कैंसर, सबकी दवा बट रहे हैं लेकिन वह नुस्खा नहीं बता रहे हैं जिस नुस्खे से बाबा पिछले दस वर्षों में २७०० करोड रूपए के आदमी बन गए? बाबा इस सबके बीच भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आंदोलन करने की बात करते हैं लेकिन लालू प्रसाद यादव उनके परम शिष्यों में से एक हैं और बाबा इस बात पर बिफर पडते हैं जब टॉक ऑन टेबल में कोई उनसे लालू के विषय में पूछ लेता है। याद है न कि बाबा ने चुनाव के दौरान भाजपा के विदेशों में जमा धन वापिस लाने के नारे में ताल से ताल मिलाई थी। लेकिन आश्चर्य है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लडने का दावा करने वाले बाबा की दिव्य फार्मेसी के मजदूर न्यूनतम मजदूरी दिलाए जाने की माँग करते हैं। हां बाबा को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि जिस तेजी से कई बडी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने प्रोडक्ट्स को लोकप्रिय नहीं बना पाईं बाबा ने बहुत कम समय में योग की जबर्दस्त मार्केटिंग की और पिछले एक दशक में योग जबर्दस्त प्रोडक्अ बन कर उभरा है। बाबा संन्यासी भी हैं, योगी भी हैं, आयुर्वेद के डॉक्टर भी हैं और जिसे कबीर ने ’माया महाठगिनी‘ कहा था उस माया के बडे साधक भी हैं और उनका संघर्ष भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है। है न हैरानी वाली बात! फिर भी बाबा का योग धर्मशास्त्रों में बताया गया योग नहीं है। बाबा स्वयं कहते हैं कि ”योग को धर्म सम्प्रदायों, पूजा पद्धतियों से जोडने का कोई मतलब नहीं है।….ओम कोई मजहबी शब्द नहीं है।“ बाबा सदियों से तपस्या करते आ रहे भारतीय मनीषियों की तपस्या पर एक झटके में पानी फेर देते हैं

इसी काय्रक्रम में बाबा रामदेव ने सारे पढे लिखे लोगों को अपसंस्कृति वाला घोषित कर दिया। बाबा ने कहा कि- ” आप सुबह से शाम तक जो भी देखते हो उसको अपसंस्कृति के तौर पर नहीं ले रहे हो। उसे सभ्यता के तौर पर ले रहे हो। वे तो पढे लिखे लोग हैं, वे तो ऐसा करेंगे। इसे ही करने के लिए तो वे पैदा हुए हैं। १७६० में इस नशा का व्यापार अंग्रेजों ने शुरू किया था। उससे पहले भारत बहुत अच्छा था। १७६० में इसको वैधानिकता दी गई नशा और वासना को। अंतर क्या है पैसे के लिए एक कोठे में बैठकर अपने शरीर को बेचती है। एक सेट और पर्दे पर बैठकर शील और शरीर को। अंतर क्या है? नाम का ही तो अंतर है। एक को वेश्या कहते हैं दूसरी को अभिनेत्री। अंतर क्या है? खाली नाम का अंतर है।“

हैं न बाबा महान जो सारे पढे लिखे लोगों को बता रहे हैं कि वे तो पैदा ही अपसंस्कृति फैलाने के लिए हुए हैं और अभिनेत्रियां वेश्या हैं। बाबा का अभिनेत्रियों को वेश्या कहना नारी जाति का अपमान है। बाबा मद में अन्धे होकर अपना विवेक खो बैठे हैं और भूल जा रहे हैं कि वह क्या क्या बक रहे हैं। अगर अभिनेत्रियां वेश्या हैं तो पैसे के लिए अध्यात्म, धर्म, योग और लोगों की भावनाओं को बेचने वाला क्या है? आप तय करें।


(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और ’दि संडे पोस्ट‘ में सह-संपादक हैं।)

बुधवार, 19 अगस्त 2009

व्यापारिक घरानों के हितसाधक सांसद

व्यापारिक घरानों के हितसाधक सांसद
अमलेन्दु उपाध्याय -
सांसद का मानसून सत्र समाप्त हो गया। अमूमन जैसा संसद का सत्र हंगामेदार रहता है, यह सत्र भी हंगामेदार रहा। लेकिन इस बार हंगामे का कारण दूसरा ही था। अब तक हंगामे का कारण सरकार की कुछ मुद्दों पर नाकामियां हुआ करती थीं और कहीं न कहीं इसमें आम आदमी की चिंताएं संसद में उठती थीं, भले ही इसमें राजनीतिक दलों की राजनीतिक चालें ज्यादा रहती हों और आम आदमी की चिंताएं कम, लेकिन कम से कम आम आदमी की चिंताएं संसद में उठती तो थीं और सरकार को इन पर विचार भी करना पडता था। परंतु इस बार संसद सत्र से आम आदमी के मुद्दे गायब थे और बहुत निर्लज्जता के साथ हमारे माननीय सांसद दो पूंजीपतियों के खेमे में बंटकर संसद का बहुमूल्य समय बरबाद कर रहे थे।

सांसद के कारपोरेटीकरण की शुरूआत की ’अनिल अंबानीवादी समाजवाद‘ के ठेकेदार तथाकथित समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने। यूं तो मुलायम सिंह खुद को गरीबों का रहनुमा कहते नहीं थकते हैं और स्वयं को डाँ लोहिया के नाम पर चलने वाली दुकानदारी का एकमात्र वारिस भी मानते हैं, लेकिन संसद में नेता जी अनिल अंबानी के हितों के लिए उलझे हुए थे। हालांकि नेता जी यह जताने से परहेज भी कर रहे थे कि वह अनिल अंबानी के पेड वर्कर हैं, इसलिए बार बार देश हित का हवाला दे रहे थे। अब नेता जी कितने महान हैं कि अगर अनिल अंबानी को गैस दो रूपए के बदले अडतीस रूपए के भाव मिलेगी तो देश का बहुत अहित हो जाएगा।

अमूमन लोगों की धारणा यह थी कि मुलायम सिंह के दाहिने हाथ अमर सिंह ही अनिल अंबानी के लिए काम करते हैं, लेकिन पहली बार मुलायम सिंह ने स्वयं आगे बढकर इस भ्रम को तोडा और साबित किया कि केवल अमर सिंह ही नहीं बल्कि वह स्वयं भी अब अनिल अंबानी के लिए काम करते ह। मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के सांसदों ने पूरे एक दिन लोकसभा में जमकर हंगामा मचाया और पैट्रोलियम मंत्री मुरली देवडा के इस्तीफे की मांग भी कर डाली। तमाशा देखिए कि इन सपा सांसदों ने देवडा के इस्तीफे की मांग तब नहीं की जब देवडा ने डीजल और पैट्रोल के दाम संसद का सत्र प्रारम्भ होने से पहले ही बढाकर आम आदमी की कमर तोड दी थी और देवडा के इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान सूखे की मार झेल रहे उत्तर प्रदेश के उस किसान को हुआ है जिसकी राजनीति करने का दावा अभी तक मुलायम सिंह करते रहे हैं।

गौरतलब बात यह है कि जिस समय समाजवादी पार्टी के सांसदों ने यह हंगामा किया उस समय महंगाई पर चर्चा होनी थी, लेकिन अनिल अंबानी की नौकरी करने के चक्कर में सपा सांसदों ने महंगाई पर चर्चा ही नहीं होनी दी। अब मुलायम सिंह कह रहे हैं कि वह अपने समाजवादी साथियों से सरकार की नाकामियों पर फोकस करने के लिए कह रहे हैं।

केवल समाजवादी पार्टी ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी भी अनिल अंबानी की पैरोकारी में जुटी हुई थी। अब बताया जाता है कि अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी के झगडे में अगर मुकेश अंबानी का नुकसान होगा तो एस्सार ग्रुप का फायदा होगा। लोकसभा में भाजपा की उपनेता सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल एस्सार ग्रुप के मुलाजिम बताए जाते हैं इसलिए एस्सार को अप्रत्यक्ष फायदा दिलाने के लिए भाजपा सांसद भी सपा सांसदों के साथ थे। भाजपा सांसदों को लामबंद करने का काम भाजपा सांसद निशिकांत कर रहे थे। चर्चा है कि निशिकांत को टिकट दिलाने में स्वराज कौशल का योगदान रहा है। इसलिए निशिकांत यह कर्ज उतारने के लिए राष्ट्रभक्ति की दुहाई देकर मुकेश अंबानी के खिलाफ जुटे हुए थे। उधर पैट्रोलियम मंत्री मुरली देवडा मुकेश अंबानी के पुराने वफादार बताए जाते हैं, तब से जब वह मुम्बई कांग्रेस के अध्यक्ष होते थे और कांग्रेस के लिए फंड जुटाते थे। इसलिए कांग्रेस के लोग राष्ट्रभक्ति के नाम पर मुकेश अंबानी के पक्ष में खडे थे।

मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच झगडा कृष्णा गोदावरी बेसिन में मिली गैस के बंटवारे का लेकर है। जब रिलायंस ने गैस खोजने का ठेका लिया था उस समय उसका बंटवारा नहीं हुआ था। बाद में बंटवारे में गैस मुकेश के हिस्से में आ गई और अनिल अंबानी के हिस्से में ऊर्जा। अब मुकेश गैस का दाम अपने हिसाब से तय कर रहे हैं जिससे अनिल को उस स्तर पर फायदा नहीं हो पाएगा जितना सस्ती गैस मिलने पर होता। इस बीच सरकार ने सर्वोच्च अदालत में यह कहकर कि गैस राष्ट्रीय संपदा है, उसका मूल्य दो भाई मिलकर तय नहीं कर सकते, प्रत्यक्ष तौर पर तो राष्ट्रहित की बात की लेकिन इसके पीछे मंशा राष्ट्रहित की नहीं थी। लेकिन सरकार के इस स्टैण्ड पर वामपंथी दलों ने सरकार को फांस लिया और उससे मांग की कि वह अपने रुख पर कायम रहे।

लेकिन हद तो तब हो गई जब झारखण्ड से निर्दलीय सांसद परिमल नाथवानी ने राज्यसभा में स्वीकार किया कि हां वह ’रिलायंस से जुडे हुए हैं‘। इसलिए नाथवानी ने जमकर मुकेश अंबानी के पक्ष में संसद में तर्क दिए और अपनी नौकरी को राष्ट्रभक्ति का मुलम्मा चढाया। नाथवानी ने तर्क दिया कि अगर मुकेश अंबानी गैस का दाम तय नहीं करेंगे तो अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की नाक कट जाएगी। अब नाथवानी के लिए मुकेश की नौकरी राष्ट्रभक्ति है और मुलायम सिंह और निशिकांत के लिए अनिल की नौकरी।

माकपा सांसदा वृंदा कारत ने इस बहस के बीच राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर सही बात कही कि जिस सांसद की आस्थाएं किसी कंपनी से सीधे जुडी हैं वह सदस्य संबंधित डिबेट में भाग न लेने पाए। सदन को किसी व्यापारिक घराने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है चूंकि कई सांसद औद्योगिक घरान के नौकर और सहयोगी हैं और ऐसे सांसदों के आचरण से सदन की गरिमा को ठेस पहुंचती है। लेकिन बासठ वर्षीय आजाद हिन्दुस्तान का यह दुर्भाग्य है कि आज नाथवानी निशिकांत और मुलायम सिंह जैसे लोग भारतीय संसद को शर्मसार कर रहे हैं।
( लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और ’दि संडे पोस्ट‘ में सह संपादक हैं।)

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

सलामत रहे मेरा वीरा

कहते हैं कि दर्द की शक्ल चाहे जैसी हो, लेकिन इसकी कसक एक जैसी होती है। दर्द का एक सैलाब दलबीर कौर के दिल में भी उमड रहा है। यह दर्द है अपने भाई से जुदा होने का, उसकी जिंदगी को बचा पाने की नाउम्मीदी का। बीस साल हो गए, भाई सरबजीत सरहद पार पाकिस्तान की जेल में बंद है और किसी भी पल उसके जीवन की डोर टूट सकती है। लेकिन बहन दलबीर की बूढी आंखों में उम्मीद की लौ आज भी झिलमिलाती है। तभी तो वे दुआ करती हैं कि वाहेगुरू... इतनी जिंदगी जरूर बाकी रखना कि मैं अपने भाई को वापस अपनी सरजमीं पर देख सकूं। आइए, राखी के इस पर्व पर एक बहन के हौसलों को मजबूती से थामने की कोशिश करें और यह दुआ मांगें कि उसकी दुआ जरूर कबूल हो।

'चंदा रे मेरे भैया से कहना, बहना याद करे...' दलबीर कौर के मोबाइल फोन पर बजती कॉलर ट्यून बरबस ही भाई-बहन के प्यार की याद दिलाती है। पाकिस्तान की जेल में बीस साल से कैद है सरबजीत सिंह। इधर बहन दलबीर जी-जान से जुटी है कि उसकी फांसी की सजा माफ हो जाए। दलबीर बार-बार कहती है, 'मेरा भाई आतंकी नहीं है, उसे फंसाया गया है, वो बेकसूर है। पाकिस्तान सरकार उसे मंजीत बताकर झूठे केस में फंसा रही है।'
पिछले बीस साल से दलबीर हर बरस रक्षाबंधन की थाली सजाती है, राखी खरीदती है, वीरा की पसंदीदा मिठाई भी खरीदती है, पर कलाई की जगह उसकी तस्वीर को राखी बांधकर दिल को दिलासा देती है। जब दलबीर का दबा हुआ दर्द आंसुओं की धार में बहता है, तो वे रूंधे हुए गले से कहती हैं, 'जब भाई साथ में था, तो मैं राखी से एक दिन पहले ही बाजार से राखी और मिठाई खरीद लाती थी, गुझिया बनाती थी। मैं उससे कहा करती थी कि जब तक मैं राखी न बांध दूं, कुछ मत खाना। उस दिन सरबजीत जानबूझकर मुझे परेशान करने और चिढाने के लिए शोर मचाता रहता कि 'दीदी जल्दी राखी बांधो, मुझे बहुत भूख लगी है... वाहे गुरू, किसी और बहन को भाई की जुदाई न सहनी पडे।'

18 साल की जुदाई, 48 मिनट का मिलन
पिछले 24 अप्रैल को अपने वीरा के साथ पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बिताए 48 मिनट आज भी दलबीर की यादों में ताजा हैं। सरबजीत की यादें लेकर जब परिवार लौट रहा था तो कुछ आंसू खुशी के थे, तो कुछ गम के। उनकी दोनों बेटियों पूनम और स्वप्निल के लिए और बहन दलबीर कौर के लिए वे पल सपनों जैसे थे। सलाखों के एक ओर सरबजीत था और दूसरी ओर बहन दलबीर और पूरा परिवार। राखी पर दलबीर हर बार सरबजीत की राखी को सहेज कर रख लेती थी। उसे आस थी कि एक न एक दिन वह इन राखियों को भाई की कलाई पर जरूर बांधेगी। जेल में दलबीर अपने साथ पिछले 18 सालों की 18 राखियां लेकर गई थीं। जब दलबीर राखी बांधने लगी, तो सरबजीत ने पूछा- इतनी राखियां फिर बचपन की तरह उन पर झपट पडा। उसने वीरा की कलाई पर 18 राखियां बांधीं और हाथ को चूमा, तो सभी भावुक हो गए।

सरबजीत के गालों पर मोटे-मोटे आंसू भरभरा आए। उसने कहा, 'बहना, हिम्मत रख। मैं बेकसूर हूं, मैं वापस जरूर आऊंगा। आज तो मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है। सिवाय शुभकामना के मैं क्या दे सकता हूं।' फिर सरबजीत ने खुद अपने हाथों से चाय बनाई। 18 सालों की जुदाई में मिलन के 48 मिनट कब गुजर गए, पता ही नहीं लगा। जब विदाई का वक्त आया, तो बहन की आंखें छलछला उठीं, बाकी सब भी बिलख उठे।

उम्मीद है वो लौटकर आएगा
दलबीर बार-बार खुद से सवाल करती हैं, 'एक छोटी-सी कोठरी में मेरा भाई धरती पर कैसे सोता होगा, वहां तो न सोने के लिए बिस्तर है, न ओढने के लिए चादर। बस चारों ओर तन्हाई पसरी रहती है। जब हमारी याद आती होगी, तो दीवारों से बातें करता होगा। मैं तो इसी आस में जिंदा हूं कि एक दिन वो लौटकर घर आएगा और हमारा घर खुशियों से चहकेगा। पिछली राखी पर पाकिस्तान सरकार ने मुझे वीजा नहीं दिया था, पर इस बार दुआ करती हूं कि मेरी उम्मीद जरूर पूरी होगी।'
अमलेंदु उपाध्याय