बुधवार, 19 अगस्त 2009

व्यापारिक घरानों के हितसाधक सांसद

व्यापारिक घरानों के हितसाधक सांसद
अमलेन्दु उपाध्याय -
सांसद का मानसून सत्र समाप्त हो गया। अमूमन जैसा संसद का सत्र हंगामेदार रहता है, यह सत्र भी हंगामेदार रहा। लेकिन इस बार हंगामे का कारण दूसरा ही था। अब तक हंगामे का कारण सरकार की कुछ मुद्दों पर नाकामियां हुआ करती थीं और कहीं न कहीं इसमें आम आदमी की चिंताएं संसद में उठती थीं, भले ही इसमें राजनीतिक दलों की राजनीतिक चालें ज्यादा रहती हों और आम आदमी की चिंताएं कम, लेकिन कम से कम आम आदमी की चिंताएं संसद में उठती तो थीं और सरकार को इन पर विचार भी करना पडता था। परंतु इस बार संसद सत्र से आम आदमी के मुद्दे गायब थे और बहुत निर्लज्जता के साथ हमारे माननीय सांसद दो पूंजीपतियों के खेमे में बंटकर संसद का बहुमूल्य समय बरबाद कर रहे थे।

सांसद के कारपोरेटीकरण की शुरूआत की ’अनिल अंबानीवादी समाजवाद‘ के ठेकेदार तथाकथित समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने। यूं तो मुलायम सिंह खुद को गरीबों का रहनुमा कहते नहीं थकते हैं और स्वयं को डाँ लोहिया के नाम पर चलने वाली दुकानदारी का एकमात्र वारिस भी मानते हैं, लेकिन संसद में नेता जी अनिल अंबानी के हितों के लिए उलझे हुए थे। हालांकि नेता जी यह जताने से परहेज भी कर रहे थे कि वह अनिल अंबानी के पेड वर्कर हैं, इसलिए बार बार देश हित का हवाला दे रहे थे। अब नेता जी कितने महान हैं कि अगर अनिल अंबानी को गैस दो रूपए के बदले अडतीस रूपए के भाव मिलेगी तो देश का बहुत अहित हो जाएगा।

अमूमन लोगों की धारणा यह थी कि मुलायम सिंह के दाहिने हाथ अमर सिंह ही अनिल अंबानी के लिए काम करते हैं, लेकिन पहली बार मुलायम सिंह ने स्वयं आगे बढकर इस भ्रम को तोडा और साबित किया कि केवल अमर सिंह ही नहीं बल्कि वह स्वयं भी अब अनिल अंबानी के लिए काम करते ह। मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के सांसदों ने पूरे एक दिन लोकसभा में जमकर हंगामा मचाया और पैट्रोलियम मंत्री मुरली देवडा के इस्तीफे की मांग भी कर डाली। तमाशा देखिए कि इन सपा सांसदों ने देवडा के इस्तीफे की मांग तब नहीं की जब देवडा ने डीजल और पैट्रोल के दाम संसद का सत्र प्रारम्भ होने से पहले ही बढाकर आम आदमी की कमर तोड दी थी और देवडा के इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान सूखे की मार झेल रहे उत्तर प्रदेश के उस किसान को हुआ है जिसकी राजनीति करने का दावा अभी तक मुलायम सिंह करते रहे हैं।

गौरतलब बात यह है कि जिस समय समाजवादी पार्टी के सांसदों ने यह हंगामा किया उस समय महंगाई पर चर्चा होनी थी, लेकिन अनिल अंबानी की नौकरी करने के चक्कर में सपा सांसदों ने महंगाई पर चर्चा ही नहीं होनी दी। अब मुलायम सिंह कह रहे हैं कि वह अपने समाजवादी साथियों से सरकार की नाकामियों पर फोकस करने के लिए कह रहे हैं।

केवल समाजवादी पार्टी ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी भी अनिल अंबानी की पैरोकारी में जुटी हुई थी। अब बताया जाता है कि अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी के झगडे में अगर मुकेश अंबानी का नुकसान होगा तो एस्सार ग्रुप का फायदा होगा। लोकसभा में भाजपा की उपनेता सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल एस्सार ग्रुप के मुलाजिम बताए जाते हैं इसलिए एस्सार को अप्रत्यक्ष फायदा दिलाने के लिए भाजपा सांसद भी सपा सांसदों के साथ थे। भाजपा सांसदों को लामबंद करने का काम भाजपा सांसद निशिकांत कर रहे थे। चर्चा है कि निशिकांत को टिकट दिलाने में स्वराज कौशल का योगदान रहा है। इसलिए निशिकांत यह कर्ज उतारने के लिए राष्ट्रभक्ति की दुहाई देकर मुकेश अंबानी के खिलाफ जुटे हुए थे। उधर पैट्रोलियम मंत्री मुरली देवडा मुकेश अंबानी के पुराने वफादार बताए जाते हैं, तब से जब वह मुम्बई कांग्रेस के अध्यक्ष होते थे और कांग्रेस के लिए फंड जुटाते थे। इसलिए कांग्रेस के लोग राष्ट्रभक्ति के नाम पर मुकेश अंबानी के पक्ष में खडे थे।

मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच झगडा कृष्णा गोदावरी बेसिन में मिली गैस के बंटवारे का लेकर है। जब रिलायंस ने गैस खोजने का ठेका लिया था उस समय उसका बंटवारा नहीं हुआ था। बाद में बंटवारे में गैस मुकेश के हिस्से में आ गई और अनिल अंबानी के हिस्से में ऊर्जा। अब मुकेश गैस का दाम अपने हिसाब से तय कर रहे हैं जिससे अनिल को उस स्तर पर फायदा नहीं हो पाएगा जितना सस्ती गैस मिलने पर होता। इस बीच सरकार ने सर्वोच्च अदालत में यह कहकर कि गैस राष्ट्रीय संपदा है, उसका मूल्य दो भाई मिलकर तय नहीं कर सकते, प्रत्यक्ष तौर पर तो राष्ट्रहित की बात की लेकिन इसके पीछे मंशा राष्ट्रहित की नहीं थी। लेकिन सरकार के इस स्टैण्ड पर वामपंथी दलों ने सरकार को फांस लिया और उससे मांग की कि वह अपने रुख पर कायम रहे।

लेकिन हद तो तब हो गई जब झारखण्ड से निर्दलीय सांसद परिमल नाथवानी ने राज्यसभा में स्वीकार किया कि हां वह ’रिलायंस से जुडे हुए हैं‘। इसलिए नाथवानी ने जमकर मुकेश अंबानी के पक्ष में संसद में तर्क दिए और अपनी नौकरी को राष्ट्रभक्ति का मुलम्मा चढाया। नाथवानी ने तर्क दिया कि अगर मुकेश अंबानी गैस का दाम तय नहीं करेंगे तो अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की नाक कट जाएगी। अब नाथवानी के लिए मुकेश की नौकरी राष्ट्रभक्ति है और मुलायम सिंह और निशिकांत के लिए अनिल की नौकरी।

माकपा सांसदा वृंदा कारत ने इस बहस के बीच राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर सही बात कही कि जिस सांसद की आस्थाएं किसी कंपनी से सीधे जुडी हैं वह सदस्य संबंधित डिबेट में भाग न लेने पाए। सदन को किसी व्यापारिक घराने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है चूंकि कई सांसद औद्योगिक घरान के नौकर और सहयोगी हैं और ऐसे सांसदों के आचरण से सदन की गरिमा को ठेस पहुंचती है। लेकिन बासठ वर्षीय आजाद हिन्दुस्तान का यह दुर्भाग्य है कि आज नाथवानी निशिकांत और मुलायम सिंह जैसे लोग भारतीय संसद को शर्मसार कर रहे हैं।
( लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और ’दि संडे पोस्ट‘ में सह संपादक हैं।)

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