राह भटके योग के ब्राण्ड रामदेव
- अमलेन्दु उपाध्याय -
२०१४ बहुत नजदीक है, जिसके चलते योग गुरू कहलाए जाने वाले बाबा रामदेव बहुत जल्दी में हैं। चूंकि साढे चार साल का समय बचा है और देश बहुत बडा है। इसीलिए बाबा रामदेव जल्दबाजी में आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त ”ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या“ को भारत की सदियों की गुलामी का कारण बता रहे हैं, शास्त्रों में लिखी संन्यास की परिभाषा को गलत बता रहे हैं, भ्रष्टाचारियों की जमात में लालू प्रसाद यादव का नाम लेने पर कुपित हो रहे हैं, उन्हें अपने असली नाम ’रामकृष्ण यादव‘ के नाम से पुकारे जाने पर भी आपत्ति है और वह अभिनेत्रियों को वेश्या बता रहे हैं।
बबा रामदेव पिछली दस अगस्त को नौएडा में थे। साप्ताहिक समाचार पत्र ’दि संडे पोस्ट‘ के कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम ’टॉक ऑन टेबल‘ में उन्होंने शिरकत की और अपने एजेन्डे पर खुलकर बोले। रौ में बोलते हुए बाबा कह गए कि ”शास्त्रों में संन्यास की परिभाषा ही गलत लिखी है।’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ वैसा संन्यास नहीं है।“ बाबा इतने पर ही नहीं रूके। जब ’नई दुनिया‘ के राजनीतिक संपादक विनोद अग्निहोत्री ने उनसे पूछना चाहा कि ” यह जो ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ का सिद्धान्त दिया गया…“ तो उनका प्रश्न पूरा सुने बिना बात बीच में ही काट कर बाबा बोले- ”इसी ने देश का बहुत नुकसान किया है। आज भारत का जो आघ्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षरण हुआ है, वह इसी से हुआ है। सात्विक लोगों ने ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ कहकर जैविक संसाधनों का संचय नहीं किया। अधर्म, असत्य, अन्याय, शोषण, अपराध, दुराचार, व्यभिचार का विरोध नहीं किया। हम ठीक हैं तो , बाकी चीजों से हमें क्या लेना देना। इस दर्शन ने भारत को सदियों की गुलामी की तरफ ढकेल दिया।“
जब अगले दिन एक समाचार पत्र में यह खबर छपी कि बाबा रामदेव ने आदि शंकराचार्य के सिद्धान्त को चुनौती दी, तो बखेडा खडा होने पर बाबा ने कह दिया कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा। लेकिन ’दि संडे पोस्ट‘ ने पूरी बात अक्षरशः प्रकाशित कर दी। अब बाबा के पास कहने को क्या है?
अब बाबा से प्रश्न पूछा जा सकता है कि अगर ’ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या‘ सिद्धान्त गलत है और शास्त्रों में लिखी हुई संन्यास की परिभाषा गलत है तब बाबा रामदेव संन्यासियों की वर्दी भगवा कपडे पहने क्यों घूम रहे हैं? क्या बाबा को जो मान सम्मान, धन देश भर से मिल रहा है वह एक संन्यासी होने के कारण नहीं मिल रहा है? और अगर बाबा संन्यास के लिए घर-बार छोडना जरूरी नहीं मानते हैं तो उन्हें उनके असली नाम ’रामकृष्ण यादव‘ पुकारे जाने पर आपत्ति क्यों है और क्यों उन्होंने अपना घर-बार छोडकर संन्यासियों की परंपरा के अनुसार बाबा शंकरदेव से दीक्षा क्यों ली?
बाबा रामदेव योग के जरिए तनाव, ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज, कैंसर, सबकी दवा बट रहे हैं लेकिन वह नुस्खा नहीं बता रहे हैं जिस नुस्खे से बाबा पिछले दस वर्षों में २७०० करोड रूपए के आदमी बन गए? बाबा इस सबके बीच भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आंदोलन करने की बात करते हैं लेकिन लालू प्रसाद यादव उनके परम शिष्यों में से एक हैं और बाबा इस बात पर बिफर पडते हैं जब टॉक ऑन टेबल में कोई उनसे लालू के विषय में पूछ लेता है। याद है न कि बाबा ने चुनाव के दौरान भाजपा के विदेशों में जमा धन वापिस लाने के नारे में ताल से ताल मिलाई थी। लेकिन आश्चर्य है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लडने का दावा करने वाले बाबा की दिव्य फार्मेसी के मजदूर न्यूनतम मजदूरी दिलाए जाने की माँग करते हैं। हां बाबा को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि जिस तेजी से कई बडी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने प्रोडक्ट्स को लोकप्रिय नहीं बना पाईं बाबा ने बहुत कम समय में योग की जबर्दस्त मार्केटिंग की और पिछले एक दशक में योग जबर्दस्त प्रोडक्अ बन कर उभरा है। बाबा संन्यासी भी हैं, योगी भी हैं, आयुर्वेद के डॉक्टर भी हैं और जिसे कबीर ने ’माया महाठगिनी‘ कहा था उस माया के बडे साधक भी हैं और उनका संघर्ष भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है। है न हैरानी वाली बात! फिर भी बाबा का योग धर्मशास्त्रों में बताया गया योग नहीं है। बाबा स्वयं कहते हैं कि ”योग को धर्म सम्प्रदायों, पूजा पद्धतियों से जोडने का कोई मतलब नहीं है।….ओम कोई मजहबी शब्द नहीं है।“ बाबा सदियों से तपस्या करते आ रहे भारतीय मनीषियों की तपस्या पर एक झटके में पानी फेर देते हैं
इसी काय्रक्रम में बाबा रामदेव ने सारे पढे लिखे लोगों को अपसंस्कृति वाला घोषित कर दिया। बाबा ने कहा कि- ” आप सुबह से शाम तक जो भी देखते हो उसको अपसंस्कृति के तौर पर नहीं ले रहे हो। उसे सभ्यता के तौर पर ले रहे हो। वे तो पढे लिखे लोग हैं, वे तो ऐसा करेंगे। इसे ही करने के लिए तो वे पैदा हुए हैं। १७६० में इस नशा का व्यापार अंग्रेजों ने शुरू किया था। उससे पहले भारत बहुत अच्छा था। १७६० में इसको वैधानिकता दी गई नशा और वासना को। अंतर क्या है पैसे के लिए एक कोठे में बैठकर अपने शरीर को बेचती है। एक सेट और पर्दे पर बैठकर शील और शरीर को। अंतर क्या है? नाम का ही तो अंतर है। एक को वेश्या कहते हैं दूसरी को अभिनेत्री। अंतर क्या है? खाली नाम का अंतर है।“
हैं न बाबा महान जो सारे पढे लिखे लोगों को बता रहे हैं कि वे तो पैदा ही अपसंस्कृति फैलाने के लिए हुए हैं और अभिनेत्रियां वेश्या हैं। बाबा का अभिनेत्रियों को वेश्या कहना नारी जाति का अपमान है। बाबा मद में अन्धे होकर अपना विवेक खो बैठे हैं और भूल जा रहे हैं कि वह क्या क्या बक रहे हैं। अगर अभिनेत्रियां वेश्या हैं तो पैसे के लिए अध्यात्म, धर्म, योग और लोगों की भावनाओं को बेचने वाला क्या है? आप तय करें।
(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और ’दि संडे पोस्ट‘ में सह-संपादक हैं।)
आप लेख लिखने के साथ साथ अपने विचार भी दे रहे है पर एक गृहस्त की दृष्टि से | बाबा रामदेव जैसे भी है मुझसे और आपसे ज्यादा सफल और ज्ञानी है (कम से कम अपने क्षेत्र में ) | रही बात किसी पे कमेन्ट करने की तो किसी का कहा सभी को अच्छा लगे ऐसा कभी हुआ नहीं | वो गलत है शंकराचार्य के सिद्धांत को गलत बताया, पर हम क्या अपने माता पिता की साड़ी बात मानते है ? हाँ रामकृष्ण यादव उनको नहीं कहना चाहिए इसलिए नहीं क्योकि वो साधु है बल्कि सिर्फ इस लिखे क्योकि अगर किसी को कोई बात अच्छी नहीं लगती तो नहीं करनी चाहिए | रही बात लालू यादव की तो लड़का कितना बुरा हो पर माँ बाप के लिए हमेशा अच्छा होता है ................ देखिये साडी समस्या ख़तम ?
जवाब देंहटाएंVichaarneey mudda.
जवाब देंहटाएंThink Scientific Act Scientific
aapko dikkat kis baat se hai, 2700 karod ka hone se, ya yog ko badhane se, ya laaloo ke kaaran, ya sabhi se, is baat ko aap sweekar kyon nahi karte ki ramdev ji ke kaaran achchhe rajneetibaajon ki gaddian hilti najar aa rahi hain. aap marj ke ilaj ke liye dawa khate hain ya nahi, yadi dawa me koi side effect hoga to kya aap dawa nahi khayenge. we to maang-maang kar 2700 karod ke bane hain, prarambh me to unhone manga hi tha, lekin bhrastachari rajneta afsar aur patrakaron ke liye bhi to likho jo andhvishwas bechkar lakhon kamate hain.
जवाब देंहटाएंMail ke jariye Reewan se varishth Patrkar ramesh ripu ka comment mila hai
जवाब देंहटाएंअध्यात्म नहीं.. सिर्फ दवा ही बेचो बाबा...
शोहरत की बुलंदी भी, पल भर का तमाषा है
जिस शाख पर बैठे हो ,वो टूट भी सकती है
योग की आड़ में अपनी कंपनी की दवा बेचने वाले कथित बाबा रामदेव कृश्ण यादव आहिस्ता आहिस्ता षोहरत के नषे में अपना विवके खोते जा रहे हैं। केवल गेरूआ कपड़ा पहन लेने मात्र से कोई साधु या सन्यासी नहीं हो जाता। यदि ऐसा होता तो गेरूआई राजनीतिक पार्टी भी साधु कही जाती। इसमें दो राय नहीं है कि रामदेव ने योग को इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया के जरिये स्थापित करने में सफल रहे हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वो ब्रम्ह,सत्यम,जगत और मिथ्या को भी उतना की समझते है, जितना योग को। ये सारी चीजे अलग अलग हैं। जो ब्रम्ह को जान लेगा वो सत्यम हो जायेगा। और वो ही गौतम बुध्द की तरह सांसारिक चक्र को समझ लेगा। लेकिन मुझे नहीं लगता की कथित बाबा रामदेव को इन चीजों का समुचित ज्ञान है। ब्रम्ह को समझने ओर उसमेेंं लीन होने में कई चक्र लग जाते हैं। इन्हें ब्रम्ह का ज्ञान नहीं है। इन्हें योग षिक्षक कहना ठीक होगा। साधु,संत या फिर सन्यासी आदि नाम देना इन षब्दों की गरिमा के खिलाफ है।
मै उनसे बहुत करीब से मिला हँ। रीवां में वो सन् 2008 में आये थे। उनसे मैने उनके योग के बारे में कई सवाल किये थे,जिनमें एक सवाल यह भी था कि योग से आपने अपनी आंख क्यों ठीक नहीं कर ली अब तक। जिसके पेट में छाला है और पीठ की हड्डी बढ़ी है वो चक्रासन और वक्रासन कैसे करेगा। उनके पास इसका जवाब नहीं था। अलबत्ताा मेरे सवाल पर झल्ला उठे थे। गुस्से में कहा कि योग के बारे में जानते ही क्या हो। अभी आपकी उम्र इतनी नहीं हुई है कि योग के बारे में जान सके। पहले ओम विलोम और कपाल भारती करना सीखों फिर योग पर सवाल करना। लेकिन जब मैने कहा कि आपकी उम्र से मेरी उम्र में कोई खास अंतर नहीं है। योग का उम्र से क्या रिष्ता, तो वो मुझे घूरने लगे थे...खैर....
सन्यासी की परिभाशा हर दौर मेें अलग अलग रही है। हर समाज में अलग अलग अब भी है। हिन्दू धर्म में जहां गेरूआ चोला पहनने वाला व्यक्ति साधु संत माना गया है। साधु संतों का अध्यात्म और जीवन हमेषा से अलग रहा है। रामदेव तो सन्यासी है ही नहीं। इसलिए कि सन्यासी कभी भी किसी भी स्त्रिी को अलग अलग नाम नहीं देता। अलग अलग नाम से पुकारता नहीं। सन्यासी का जीवन भिक्षाटन में बितता है दवा बेचने में नहीं । वो किसी के खिलाफ कमेंट नहीं करता, जैसा कि रामदेव करते हैं। पराई स्त्री को मां से कम नहीं आंकता। अब इस कथित सन्यासी या कहें साधु को सेलीना जेठली की सेक्स लाइफ या और स्क्रीन लाइफ के बारे में ज्यादा जानकारी है। ये तो फिल्मी पत्रकार से भी आगे निकल गये हैं। औरत हर जगह औरत है। सम्मानीय है,पूज्यनीय है, केवल पेट के नीचे गाली है। पेट की नीचे की भूख को अलग अलग नाम दे रहे हैं। उनके फर्म में औरत काम करे तो मजदूर है और कोठे में काम करे तो वेष्या है। मुझे तो लगता है उनका मन किसी रेडलाइट एरिया में जाकर योग षिविर लगाने का है। वहां भी वो दवा बेचना चाहते हैं,और जिस्म बेचने वाली महिलाओं को बतायेगें कि फला दवा खाये ंतो आपकी सेक्स लाइफ और भी बढ़ जायेगी। रामदेव योग के जरिये तो ख्याति पा लिये हैं,पर लगता है वो वेष्याओं के बीच जाकर अलग तरह की ख्याति पाना चाहते हैं।
00 आपका भेजा मुझे अभी तक न तो कुरियर मिला और न ही अखबार। मोबाइल भी बंद मिलता है। यदि नंबर बदल दिये हैं तो मेल करें। उम्मीद हैं प्रसन्न होगें। अभिवादन सहित ..
0 रमेष कुमार ''रिपु ''
सुन्दर नगर,रीवां म.प्र.
मो. 09200229818