इफ़्को और उदय शंकर अवस्थी को जानना चाहिए कि वह तो गाली नहीं सम्मान दे रहे हैं और इस तरह अपमानित कर के? इस से तो श्रीलाल शुक्ल की आत्मा भी कलप जाएगी !
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अब हालात बहुत बदल गए हैं। अब तो लोग सम्मान का जुगाड़ करते हैं, सम्मान खरीदते हैं, लॉबीइंग करते हैं। आदि-आदि, करते हैं। वगैरह-वगैरह करते हैं। राजनीतिक, उद्योगपति, फ़िल्म आदि के लोग तो यह सब अब खुल्लमा-खुल्ला करने लगे हैं। हमारे साहित्यकार आदि भी इसी चूहा दौड़ में खुल्लम-खुल्ला दौड़ लगाने लगे हैं। प्रायोजित-नियोजित आदि सब कुछ करने लगे हैं। कुछ लोग तो अब यह सब नहीं हो पाने पर खुद ही पुरस्कार आदि भी शुरु कर लेते हैं और ले भी लेते हैं। खुद ही संस्था गठित कर लेंगे। या पत्रिका निकाल लेंगे। या मित्रवत कह कर यह सब प्रायोजित करवा लेंगे। बाकायदा खर्चा-वर्चा दे कर।
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शेखर जोशी को मिले श्रीलाल शुक्ल सम्मान की त्रासदी
बुधवार, 31 अक्तूबर 2012
शनिवार, 27 अक्तूबर 2012
शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012
एटीएस की विवादित कार्यशैली पर स्थिति स्पष्ट करने का अखिलेश सरकार पर दबाव
"दारापुरी ने एटीएस और खुफिया एजेंसियों पर इस्लामोफोबिया और असुरक्षा का माहौल फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह अभी पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की डेढ़ सौवीं वर्षगंाठ पर विस्फोट करने की फिराक में रहने का आरोप लगाकर पकड़ा था, बेगुनाह बरी हुए हैं। जिससे समझा जा सकता है कि राष्ट्रवाद के नाम पर असुरक्षा का भय दिखाने में किस तरह खुफिया एजेंसियां शामिल हैं।"
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एटीएस की विवादित कार्यशैली पर स्थिति स्पष्ट करने का अखिलेश सरकार पर दबावगुरुवार, 25 अक्तूबर 2012
अखिलेश का यूपी अब गुजरात बनेगा-फैजाबाद शुरुआत करेगा
- फैजाबाद में दंगा राज्य सरकार के प्रोत्साहन से हुआ ?
- दंगे में खुफिया एजेंसी की भूमिका संदिग्ध ?
- दंगों में आईबी की भूमिका की जांच हो, एसीशर्मा को तत्काल हटाया जाय- रिहाई मंच की मांग
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अखिलेश का यूपी अब गुजरात बनेगा-फैजाबाद शुरुआत करेगा
पार्टनर आपकी पाॅलिटिक्स क्या है ?
तरुण भटनागर लिखते हैं कि ‘‘बस्तर में लूट मची है, शोषण, अन्याय और अत्याचार है।’’ लेकिन यह सब कौन कर रहा है और इसके पीछे कौन है ? इस पर वे एक बार फिर अपनी कहानी और पत्र दोनों ही जगह खामोश रहते हैं। कहीं कोई जरा सा भी इशारा नहीं। या यूं कहें, जानते हुए भी असल सवालों से किनाराकशी है। भटनागर यदि जरा सा भी तटस्थ होते, तो वे इस शोषण, अन्याय और अत्याचार के पीछे छिपे असली चेहरों को आसानी से पहचान लेते। उनकी इस बात से शायद ही कोई इत्तेफाक जतलाए कि जंगल में पहले आंदोलन पहुंचा। सच बात तो यह है कि आंदोलन से बहुत पहले सरकार पहुंच चुकी थी। वह भी अपने शोषणकारी चेहरे के साथ।
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पार्टनर आपकी पाॅलिटिक्स क्या है ?बुधवार, 24 अक्तूबर 2012
शिवमूर्ति की स्वीकृति का बैंड-बाजा
दलितोत्थान की गाथाएं अब सब की जुबान पर हैं। ए राजा से लगायत मायावती तक। राजधानियों के राजमार्गों से लगायत गांवों की मेड़ों तक।.......
शिवमूर्ति एक ईमानदार कथाकार हैं। इस लिए वह कथ्य में अपने जातिगत विरोध वाले मित्रों की तरह बेईमानी नहीं कर पाते
कोई कितना भी बेहतरीन रचनाकार क्यों न हो, हर कोई उसे पढ़ेगा ही यह भी कतई ज़रुरी नहीं है।
http://hastakshep.com/?p=25878
शिवमूर्ति एक ईमानदार कथाकार हैं। इस लिए वह कथ्य में अपने जातिगत विरोध वाले मित्रों की तरह बेईमानी नहीं कर पाते
कोई कितना भी बेहतरीन रचनाकार क्यों न हो, हर कोई उसे पढ़ेगा ही यह भी कतई ज़रुरी नहीं है।
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शिवमूर्ति की स्वीकृति का बैंड-बाजा
रविवार, 21 अक्तूबर 2012
यही परम्परा रही है अपनी-आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियो निम्नतम
अगर गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली सीबीआई संदिग्ध हो सकती है तो पार्टी का लोकपाल भी हो सकता है। एक और बात की लोकपाल भले ही जज होगा पर होगा तो रिटायर्ड ही। संविधान के अनुसार शक्तियाँ पद को मिलती हैं व्यक्ति को नहीं
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यही परम्परा रही है अपनी-आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियो निम्नतम। |
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यही परम्परा रही है अपनी-आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियो निम्नतम। |
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शनिवार, 20 अक्तूबर 2012
जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैं
कहा क्या जा रहा है, संसदीय व्यवस्था बकवास है। तो कौन सी व्यवस्था सही है उसे बताओ ? राजनीति मे बेईमान लोग हैं। तो आपका एतराज उन बेईमानों पर है या राजनीति पर ? उस संदेश को तो देखिये जो बाहर ज़हर की तरह फैलाया जा रहा है। इतना ही नहीं राजनीति करने वाला कम से कम पाँच साल में ही सही लेकिन जनता के सामने जाता तो है उसकी जवाबदेही बनती है। लेकिन नौकरशाही को देखिये उसकी कौन सी जवाबदेही है ? उसका एक ही एजेंडा है – ‘देख तो रहे हैं ऊपर तक देना पड़ता है’
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जनता रोटी मांग रही है और वो ‘शराब’ खोज रहे हैंअमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?
अब देखना यह है कि पंद्रह मंत्रियों और कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ने वाली अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी, केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करती है या नहीं?
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अमरीकी “आवाज़” से क्या रिश्ता है आपका, मोहतरम केजरीवाल साहब ?शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012
बुधवार, 17 अक्तूबर 2012
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
"हम डोमेनवाले यह तो नहीं कह सकते कि हम फेसबुक हो जाएंगे या फिर कोई देशी गूगल खड़ा कर देंगे. लेकिन ये डोमेनवाले उन शोहदों और निठल्लों से ज्यादा आगे जरूर खड़े नजर आते हैं जो दिन रात फेसबुक पर बैठे बैठे लाइक खोजते रहते हैं."
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
कुछ मीत मिले एक मीट हुई
मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012
सोमवार, 15 अक्तूबर 2012
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
स्पेशल एक्सप्लोइटेशन जोन (एस ई ज़ेड )
गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक
मज़दूर मरा तो ख़बर न टीवी पर आयी न अखबार में
रविवार, 14 अक्तूबर 2012
इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
केजरीवाल या तो बहुत भोले हैं या बहुत शातिर जो वे कहते हैं कि ग्राम पंचायतों को ज्यादा अधिकार देने से जनता के हाथों में सत्ता आ जायेगी। हर कोई जानता है कि पंचायतों पर धनी किसानों, गाँव के धनाढ्यों, दबंगों का कब्ज़ा है। पंचायती राज का ढाँचा लागू ही किया गया है ग्रामीण क्षेत्र के शासक वर्गों को सत्ता में भागीदार बनाने के लिए। गाँव में प्रधान वही चुना जाता है जो पैसे और डण्डे के दम पर वोट खरीद सकता है। ज्यादातर छोटे किसानों और मज़दूरों की उसमें कोई भागीदारी नहीं होती। हर पंचायती क्षेत्र में ज्यादातर धनी किसानों-कुलकों-दबंगों के परिवार के सदस्य या उनका कोई लग्गू-भग्गू ही चुनाव जीतता है। जब तक आर्थिक ढाँचे में कोई बदलाव न हो, तब तक कैसी भी चुनाव प्रणाली हो, आर्थिक रूप से ताक़तवर लोग ही चुनकर ऊपर जायेंगे।
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इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
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इसी मौत मरने थे अन्ना -बाबा के तथाकथित आन्दोलन
शनिवार, 13 अक्तूबर 2012
शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012
मराठी नाटकों को आर्थिक झंझट से मुक्त कर देगी महाराष्ट्र कलानिधि
मुंबई में महाराष्ट्र कलानिधि नाम की संस्था का विधिवत उदघाटन कर दिया गया. शुरू तो यह पहली ही हो गयी थी लेकिन अब यह पूरे ताम झाम के साथ मराठी कलाजगत में प्रविष्ट हो गयी है. यह संस्था मराठी नाटक, सिनेमा और सीरियलों की गुणवता को बेहतर बनाने के लिए काम करेगी. महाराष्ट्र कलानिधि की योजना है कि मराठी मनोरंजन की संपदा को हर तरह से समर्थन दिया जाए.
मराठी नाटकों को आर्थिक झंझट से मुक्त कर देगी महाराष्ट्र कलानिधि
मराठी नाटकों को आर्थिक झंझट से मुक्त कर देगी महाराष्ट्र कलानिधि
गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012
बुधवार, 10 अक्तूबर 2012
मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012
तो मुलायम का परिवार भैंस चराता ?
दलितों की रहनुमाई का दावा करने वाली मायावती की रैली में मंच पर दलितों का प्रतिनिधित्व देखने को नहीं मिला। नसीमुद्दीन सिद्दकी, स्वामी प्रसाद मौर्या, के साथ ब्राह्मण कुलभूषण सतीश चंद्र मिश्र, सुरेंद्र प्रसाद मिश्र और रामवीर उपाध्याय मंच को सुशोभित कर रहे थे।
तो मुलायम का परिवार भैंस चराता ?
तो मुलायम का परिवार भैंस चराता ?
कैंसर से जूझते हुए शावेज़!!! …शावेज़… शावेज़ यहां से वहां तक…शावेज़
एक मशाल लगातार जल रही है, वेनेज़ुएला में, जो लातिनी अमरीका को ही नहीं पूरी दुनिया को प्रेरित कर रही है. विश्व पूंजीवाद को झन्नाटेदार तमाचा मार सकता है एक छोटा-सा देश,
कैंसर से जूझते हुए शावेज़!!! …शावेज़… शावेज़ यहां से वहां तक…शावेज़
कैंसर से जूझते हुए शावेज़!!! …शावेज़… शावेज़ यहां से वहां तक…शावेज़
“जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है”
अब चाहे, लंगोटी पहन कर मोदी दंगल में मनमोहन के मुकाबले उतरें या बंगाल की शेरनी राजग में दोबारा दाखिल हो जाएँ, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला!
“जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है”
“जमीन की लड़ाई में सारी दुनिया आई है”
सोमवार, 8 अक्तूबर 2012
रविवार, 7 अक्तूबर 2012
जब इस कब्रिस्तान में जाग उठेंगे खेत! आमीन
जीवन जीने के संसाधनों के असमान वितरण के कारण देश में 35 अरबपतियों के चलते अस्सी करोड़ गरीब अपने हक से वंचित हो गए हैं। देश में 24 करोड़ लोग भूमिहीन हैं। सरकार की प्राथमिकता लोगों को भूमि स्वामी बनाने की नहीं बल्कि भूमिहीन करने की है। यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून के जरिए किसानों की जमीनों के अधिग्रहण की प्रक्रिया आसान की जा रही है। भूमि सुधार के बिना अधिग्रहण कानून में संशोधन का मकसद जल, जंगल जमीन और आजीविका के हक हकूक की लड़ाई को खत्म करना!
जिंदा कौमें वक्त बदलने का इंतजार नहीं करतीं, वक्त बदल देती हैं! हमे अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी और इसके लिए एकजुट होकर अपनी ताकत का एहसास कराना होगा।
जब इस कब्रिस्तान में जाग उठेंगे खेत! आमीन
जिंदा कौमें वक्त बदलने का इंतजार नहीं करतीं, वक्त बदल देती हैं! हमे अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़नी होगी और इसके लिए एकजुट होकर अपनी ताकत का एहसास कराना होगा।
जब इस कब्रिस्तान में जाग उठेंगे खेत! आमीन
शर्मनाक है कांग्रेसियों का रॉबर्ट वाड्रा के बचाव में इस तरह उतर पड़ना
समझ नहीं आता प्रशांत भूषण जैसे वकील के हाथ में ऐसे महत्वपूर्ण साक्ष्य हों फिर भी उन्होंने न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने के बारे में क्यों नहीं सोचा ?
शर्मनाक है कांग्रेसियों का रॉबर्ट वाड्रा के बचाव में इस तरह उतर पड़ना
शर्मनाक है कांग्रेसियों का रॉबर्ट वाड्रा के बचाव में इस तरह उतर पड़ना
शनिवार, 6 अक्तूबर 2012
पश्चिम बंगाल के बहाने : मुरदे जिंदों को जकड़े हुए हैं …………….
अभी सिर्फ 16 महीने बीते हैं जब वाममोर्चा सरकार के लंबे 34 साल के शासन का, बल्कि एक क्रांतिकारी नाटक का पटाक्षेप हुआ था। यह कोई मामूली घटना नहीं थी। यदि वाममोर्चा का यह लंबा शासन अपने आप में एक इतिहास था तो इस शासन का पतन भी कम ऐतिहासिक नहीं कहलायेगा। वाममोर्चा सरकार के अवसान को सिर्फ ममता बनर्जी और उनकी टोली की करामात समझना या इसे वाममोर्चा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के कुछ भटकावों और कदाचारों का परिणाम मानना इसकी गंभीरता को कम करना और इसके ऐतिहासिक सार को अनदेखा करने जैसा होगा।
पश्चिम बंगाल के बहाने : मुरदे जिंदों को जकड़े हुए हैं …………….
पश्चिम बंगाल के बहाने : मुरदे जिंदों को जकड़े हुए हैं …………….
शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012
गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012
बुधवार, 3 अक्तूबर 2012
दिल्ली पुलिस (स्पेशल सेल) का खोखला ‘सच’
दिल्ली पुलिस (स्पेशल सेल) का खोखला ‘सच’
दिल्ली पुलिस की प्रतिष्ठित स्पेशल सेल, इन दिनों एक बार फिर काफी चर्चा में है. पर आतंकवाद माओवाद, उग्रवाद और न जाने क्या-क्या से ‘लड़ने’ के लिए चर्चित दिल्ली पुलिस का ये विशेष बल, जिसकी स्थापना सन 1946 में, “दी दिल्ली स्पेशल पुलिस एसटैबलिस्मेंट एक्ट-1946″ तहत हुयी थी. लेकिन इस चर्चा से स्पेशल सेल कुछ ज़्यादा खुश नहीं है, बल्कि परेशान नज़र आ रही है. और आये दिन अखबारों में तरह-तरह के बयान दे रही है. इसका मुख्य कारण है, पिछले दिनों दिल्ली के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षको के एक मानवाधिकार संगठन, जामिया टीचर्स सोलिडरिटी असोसिऐशन (JTSA) द्वारा इस विशेष बल की करतूतों पर लायी गयी रिपोर्ट, जिसका नाम है, आरोपित, अभिशप्त और बरी: स्पेशल सेल का खोखला ‘सच’. आगे पढ़ें
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
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