रविवार, 26 अप्रैल 2009

हारेगी भाजपा और कांग्रेस तो जीतेगा भारत

हारेगी भाजपा और कांग्रेस तो जीतेगा भारत-
अमलेन्दु उपाध्याय, राजनीतिक समीक्षक, गुरुवार, 23 अप्रैल, 2009
भाजपा ने नारा दिया है-‘ जीतेगी भाजपा/ जीतेगा भारत ’। बहुत प्यारा नारा है, वैसे भी नारे देने में भाजपा को महारत हासिल है। यह नारा ठीक उसी तर्ज पर है, जैसे जीतेगा सचिन जीतेगा भारत या जीतेगा अजहरउद्दीन जीतेगा भारत! लेकिन काफी दिमाग दौड़ाने के बाद भी अपने दिमाग में यह बात नहीं आई कि भाजपा के जीतने से देश का क्या वास्ता है? क्या विक्रम बेताल की कहानियों की तरह भारत के प्राण भाजपा में कैद हैं? अगर जीतेगी भाजपा तो जीतेगा भारत, तब क्या ‘हारेगी भाजपा तो हारेगा भारत’ ? फिर तो कई बार भारत की शर्मनाक हार हो चुकी है, क्योंकि भाजपा तो हारने का विश्वकीर्तिमान बना चुकी है। दरअसल भाजपा रिटेल वोटों की राजनीति करके थोक में देश बेचने का इरादा रखती है। देखने में आ रहा है कि जिस तरह ‘इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया’ का नारा दिया गया था उसी तर्ज पर जीतेगी भाजपा/ जीतेगा भारत’ नारा दिया जा रहा है। लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि सोनिया और अडवाणी अब एक ही भाषा बोल रहे हैं। तेजी से उभरते क्षेत्रीय दलों से बौखलाए अडवाणी जी कह रहे हैं कि देश में दो मोर्चे हैं, एनडीए और यूपीए। उधर सोनिया जी फर्मा रही हैं कि तीसरे और चौथे मोर्चे कुर्सी के लिए बने हैं।
यहां गौर तलब है कि सोनिया जी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं, सत्ता को ठोकर मारने का जज्बा रखती हैं। लेकिन बिना समाजवादी पार्टी का समर्थन पत्र लिए राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री बनने का दावा करने जा पहुचती हैं। इस चिलचिलाती धूप में राजमहलों में पली सोनिया जी देश भर में मारी मारी फिर रही हैं, वह कुर्सी के लिए नहीं, इस देश पर एहसान करने के लिए मारी मारी फिर रही हैं?
अपने 16 मई 2009 तक के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी परमाणु करार पर विश्वासमत पर सरकार को बचाने के लिए जिस बेशर्मी का खेल खेलकर इस देश को बेइज्जत कर रहे थे और लोकतंत्र का चीरहरण कर रहे थे , वह भी कुर्सी के लिए नहीं बल्कि इस देश को बिजली दिलाने के लिए कर रहे थे। प्रश्न यह है कि क्षेत्रीय दलों के उभार से दोनों तथाकथित बड़े राष्ट्रीय दलों में बेचैनी का आलम क्यों है? भाजपा और कांग्रेस दोनों मिलकर क्षेत्रीय दलों को नेस्तनाबूद करना क्यों चाहती हैं? हमें यह याद रखना चाहिए कि क्षेत्रीय दलों को कमजोर करके आप संघात्मक ( फेडरल) भारत की परिकल्पना नहीं कर सकते। अगर आरोप लगाया जाए कि क्षेत्रीय दल सत्ता पाने के लिए सौदेबाजी करते हैं, तो क्या भाजपा और कांग्रेस बिना सौदेबाजी के सत्ता पा लेते हैं? कांग्रेस की डीएमके के साथ सत्ता के लिए सोदेबाजी से ज्यादा शर्मनाक सौदेबाजी भला और क्या होगी? गुजराल सरकार को कांग्रेस ने इसी आधार पर गिराया था कि जैन आयोग की एक अंतरिम रिपोर्ट में द्रमुक का राजीव गांधी हत्याकांड में हाथ होने का इशारा किया गया था। अब सोनिया जी की महानता पर बलिहारी जाऊँ कि कुर्सी की खातिर नहीं बल्कि देश हित में उन्होंने द्रमुक से समझौता कर लिया! यह बात कहने में कोई हिचक नहीं है कि कांग्रेस की मौत और भाजपा का कैंसर ही इस देश के संघीय ढांचे को मजबूत करेगा, जिसे भाजपा और कांग्रेस लगातार मजबूत केन्द्र के नारे के नाम पर तबाह-और-बर्बाद करते आए हैं। परंतु असली सवाल यह है, कि क्या वाकई तीसरे मोर्चे के दल सरकार बना पाएंगे? लगता तो नहीं! क्योंकि अमरीका की इच्छा मनमोहन और अडवाणी में से ही किसी को प्रधानमंत्री बनाने की है। अमरीका ने इस दिशा में गम्भीर प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। अमरीकी निर्देश पर आरएसएस अब भाजपा और कांग्रेस को एक कराने के अभियान पर जुट गया है। संघ के मीडिया गुरू माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं, कि देश की स्थिरता के लिए दोनों बड़े दलों को एक हो जाना चाहिए। मनमोहन का अमरीका प्रेम जगजाहिर है, जबकि भाजपाई तो पुराने अमरीका भक्त हैं। जब अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री की हैसियत से अमरीका की यात्रा पर गए थे तो अपने साथ संघ प्रमुख का अमरीकी राश्ट्रपति को संबोधित पत्र लेकर गए थे जिसमें अमरीका को धर्मयोद्धा की संज्ञा दी गई थी। इसलिए अमरीकी पहल पर भाजपा और कांग्रेस चुनाव के बाद तीसरे मोर्चे को रोकने के लिए एक होने वाले हैं। यह अमरीकी आदेश से ही संभव हुआ है कि मनमोहन और अडवाणी अब एक दूसरे के खिलाफ नहीं बोल रहे हैं। इस देश की संप्रभुवता को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि अमरीकापरस्त बड़े दल भाजपा और कांग्रेस बुरी तरह हारें। इन दोनों के हारने से देश का बहुत भला होगा और देश का संघीय ढांचा मजबूत होगा। अभी एक शेर सुना-” तू न मिट जाएगा किसी दल के मिट जाने से / नष-ए-मय कम होता नहीं पैमाने के बदल जाने से।“ इसलिए अब ‘जीतेगी भाजपा/जीतेगा भारत’ का नारा नहीं बल्कि ‘हारेगी भाजपा और कांग्रेस तो जीतेगा भारत’ का नारा लगना चाहिए।
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>लेखक परिचय : लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और पाक्षिक पत्रिका ‘प्रथम प्रवक्ता’ के सम्पादकीय विभाग में हैं।
>मो0 - 9953007626

2 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sahi baat kahi hai.pahala blog mila jo teesre morche k samarthan me hai.

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  2. सोनिया के स्वांग के बारे में बहुत सही लिखा है लेकिन कम्युनिस्टों को कैसे भूल गये? उनका भारतद्रोह तो किसी से छिपा नहीं है। उन्होने अ९४२ में 'भारत छोड़ो आन्दोलन ' का विरोध किया था; परम देशभक्त सुभाषचन्द्र बोस को 'कुत्ता' कहा था; १९६२ में भारत के बजाय चीन का साथ दिया; हमेशा रूस के पिछलग्गू रहे और भारत को भी उसके पीछे ले जाने की पूरी कोशिश की।

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