बुधवार, 17 जून 2009

सच न घटता है न बढ़ता है बृजेश जी

सच न घटता है न बढ़ता है, बृजेश जी
अमलेन्दु उपाध्याय
बी4एम पर प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोषी के एक अभियान, जिसमें उन्होंने चुनाव के दौरान कुछ समाचारपत्रों द्वारा धन लेकर खबरें छापने पर ऐतराज जताया है, पर कई नामी गिरामी पत्रकार अपनी भड़ास निकाल चुके हैं। यहां मैं अपनी बात प्रारंभ करने से पहले स्पष्ट कर दूं कि मैं ना तो प्रभाष जी का प्रवक्ता हूं और न कभी उनसे मिला हूं। रही बात आलोक तोमर और बृजेश कुमार सिंह की तो आलोक तोमर को भी बरसों से पढ़ता रहा हूं पर मिला कभी नहीं हूं। और यह बृजेश कुमार सिंह कौन हैं और कहां पाए जाते हैं, मैं नहीं जानता। अब यह मेरा अज्ञान हो सकता है या दुर्भाग्य कि मैंने इस देश की सवा अरब आबादी के नाम की तरह बृजेश जी का नाम इससे पहले कभी नहीं सुना। इसलिए मैं न तो आलोक तोमर के खेमे में हूं और न बृजेश सिंह के। दूसरी बात यह कि मैंने कभी जनसत्ता में नौकरी भी नहीं की है और वहां नौकरी मांगने जा भी नहीं रहा हूं। हां, बी4एम से ही मालूम पड़ा कि बृजेश जी एक लाला के पैम्फलेट में (क्षमा करें उसे 'अखबार' की संज्ञा देकर अखबार शब्द का अपमान नहीं किया जा सकता!) मुलाजिम हैं और चूंकि लाला की उस दुकान का आरएनआई में रजिस्ट्रेशन है इसलिए बृजेश जी तकनीकी रूप से पत्रकार कहलाए जाने के अधिकारी हैं। इसलिए मैं सिर्फ मुद्दे की बात करना चाहता हूं और हो सकता है उससे बृजेश जी मुझसे कुपित हो जाएं।
प्रभाष जी ने अखबारों के जिस कारनामे पर ध्यान खींचा है, अखबारों के वह कुकृत्य बृजेश जी जैसे लोगों के लिए, जो पत्रकारिता को सिर्फ लाला की नौकरी समझते हैं, सम्मान की बात हो सकते हैं। लेकिन जो लोग पत्रकारिता को मिशन बनाकर या आम आदमी की आवाज समझकर काम करते हैं उनके लिए अपमान की बात हैं। बृजेश जी ने प्रभाष जी से कुछ सवाल किए हैं और उनके उत्तार न मिलने पर दुख प्रकट किया है। बेहतर होता कि बृजेश जी ने यह सवाल एक पत्रकार की हैसियत से पूछे होते, लेकिन उन्होंने जिस अंदाज में अपनी बात कही है उससे तो लगता है कि उन्होंने यह सवाल अपने लाला की नजरों में अपने नंबर बढ़ाने के लिए किए हैं। बहरहाल बृजेश जी अगर प्रभाष जी से सवाल करने से पहले एक मुकम्मल पत्रकार बन पाए होते तो खुशी हुई होती। वह तो अपने लाला के माउथपीस बनकर रह गए। बता दिया जाए कि 'जागरण' पर सवाल प्रभाष जी ने तो बहुत बाद में उठाए हैं सबसे पहले तो जागरण के खिलाफ मोर्चा तो उन अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्होंने नरेंद्र मोहन को राज्यसभा का सदस्य बनाया था, की खड़ाऊ लेकर चुनाव लड़ रहे लालजी टंडन ने खोला था। साथ में उन मोहन सिंह ने, जिनकी पार्टी ने महेंद्र मोहन को राज्यसभा का सदस्य बनाया था, खुला सवाल किया था कि महेंद्र मोहन बताएं कि राज्यसभा सदस्य बनने के लिए उन्होंने सपा को कितने रूपए दिए थे।
जहां तक जागरण का सवाल है तो उसने पत्रकारिता का अपमान पहली बार नहीं किया हैं इससे पहले भी बाबरी मस्जिद की शहादत के वक्त भी उसने पत्रकारिता को कलंकित किया था और उसके कृत्य पर उसे प्रेस कौंसिल से लताड़ भी पड़ी थी। बृजेश जी ने जनसत्ता के बाबत भी कुछ कमेंट किए हैं। अब बृजेश जी चूंकि एक बड़े लाला के नौकर हैं इसलिए बड़े पत्रकार भी हैं। लेकिन बृजेश जी ही स्वयं बता दें कि क्या जागरण अपने कर्मचारियों का भयंकर शोषण नहीं करता है? रही बात बिकने की तो 'हंस' कम बिकती है और 'मायापुरी' व 'मनोहर कहानियां' ज्यादा बिकती हैं। प्रेमचंद का 'गोदान' कम बिकता है लेकिन वेदप्रकाश शर्मा या ओमप्रकाश शर्मा नाम के किसी आदमी का 'वर्दी वाला गुंडा' ज्यादा बिकता है। लिहाजा बृजेश जी के नजरिए से प्रेमचंद छोटे साहित्यकार हैं।
प्रभाष जोशी होने का मतलब बृजेश जी नहीं समझ पाए हैं। प्रभाष जी ने रामबहादुर राय, आलोक तोमर, प्रदीप सिंह जैसे लोग दिए हैं जिन पर पत्रकारिता को नाज है। जबकि 'जागरण' जरनैल सिंह पैदा करता है। किसी का यह कहना कि खबर बेचने में बुराई क्या है, ठीक वैसा ही तर्क है कि एक भले घर की लड़की कॉलगर्ल बन जाए और कहे कि वह वेश्या नहीं है और शरीर तो उसका है, तो उसे बेचने में किसी को क्या आपत्ति है। अगर आलोक तोमर, प्रभाष जोशी के प्रवक्ता बनकर मैदान में उतरे तो बात समझ में आती है कि वे प्रभाष जी के शिष्य हैं और साथ में काम कर चुके हैं। लेकिन बृजेश जी तो 'जागरण' के बचाव में एक स्वामिभक्त मुलाजिम बनकर ही उतरे।
बृजेश जी को आलोक तोमर की भाषा से आपत्ति है। हर तथाकथित 'सभ्य' व्यक्ति को आम आदमी की भाषा से नफरत होती है उसकी नजर में 'हरामी' तो गाली है लेकिन 'बास्टर्ड' गीता के श्लोक की तरह है। और भिंड मुरैना की पुष्ठिभूमि से आना कोई अपराध नहीं है। जिस भिंड, मुरैना और चंबल की पुष्ठिभूमि पर बृजेश जी तंज कस रहे हैं, उस चंबल के डाकू बहुत मॉरल वाले लोग हुए हैं। बृजेश जी के लालाओं की तरह के नहीं। रही बात 'तिहाड़' की तो मेरा मानना है कि 'सच' बोलने की सजाओं में आलोक तोमर का तिहाड़ जाना और उमेश डोभाल का अंत, दोनों हो सकते हैं। लेकिन आलोक तोमर ने ना तो कभी चंद्रास्वामी से अपने संबंध छिपाए और न दाउद के भाई नूरा से। बृजेश जी ने शायद विनोद शुक्ला नाम के आदमी का नाम नहीं सुना है। अगर नहीं सुना है तो मालूम कर लें, वे जागरण के लखनऊ संस्करण के संपादक थे और क्या वे भी जेल गए थे? पर क्यों? इसी तरह बरेली में एक चंद्रकांत त्रिपाठी नाम के सज्जन हैं जो जागरण के सर्वेसर्वा हैं। उनकी जेब में कलम नहीं मिलेगी लेकिन दफ्तर में राइफल रखते हैं। बृजेश जी जरा भाषण देने से पहले अपने संस्थान की करतूतों पर एक सरसरी नजर ही डाल लेते।
अब अंत में मुद्दे की बात। चुनाव के दौरान कई बड़े अखबारों ने जैसा नंगई का नाच खेला और जनजागरण का अभियान भी चलाया, वह अमिताभ बच्चन के उस विज्ञापन की याद ताजा कर देता है जब निठारी कांड के बाद अमिताभ कह रहे थे कि -'यूपी में है दम/ चूंकि जुर्म यहां है कम'। क्या तमाशा है कि एक बड़ा अखबार चुनाव के दौरान अपील कर रहा है कि अपराधियों को वोट न दें और उसी पन्ने पर नक्सली नेता और कई संगीन वारदातों के आरोपी अब सांसद कामेश्वर बैठा का गुणगान कर रहा है कि वे बहुत भले आदमी हैं। वैसे भी प्रभाष जी ने किसी पत्रकार पर उंगली नहीं उठाई है, उन्होंने अखबार मालिकों को कठघरे में खड़ा किया है। फिर भी बृजेश जी जागरण के बचाव में खड़े हैं, तो सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि धूमिल ने जैसा कभी कहा था कि रामनामी बेचने से बेहतर रंडियों की दलाली करना है।
एक स्वामीभक्त मुलाजिम होने के नाते बृजेश जी का अपने लाला के बचाव में उतरना स्वाभाविक है। चूंकि ऐसा करने से उन्हें नौकरी में तरक्की भी मिल सकती है और पगार भी बढ़ सकती है। लेकिन इस देश में बहुत बड़ी संख्या उन पत्रकारों की है जो प्रभाष जोषी, कमलेश्वर,, राजेंद्र माथुर, अज्ञेय, धर्मवीर भारती, रघुवीर सहाय, उदयन शर्मा और एस पी सिंह जसे लोगों से प्रेरणा लेते रहे हैं लेकिन पूर्णचंद्र गुप्त, नरेंद्र मोहन या महेंद्र मोहन किस पत्रकार के आदर्श हैं, जरा प्रकाश डालें बृजेश जी!!!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. raddi bechne walo va khareedne walo ke naukro ke bare me amlendu jee post likhna uchit nahi hai isse inke bhav bhadenge. suman loksangharsha

    जवाब देंहटाएं
  2. amlendu ji sahi kaha aapne. main apki baat se puri tarah sehmat hu

    जवाब देंहटाएं
  3. bat to saree samajhdani kee hai,
    kisee kee samjhdani gandhee jee ke rang se prabhavit hoti hai,aur use niti niyam, sidhant samajh main hee nahee aate. unke liye to patrakarita sikho kamao yojna hai. aapkee bat ka in mahanubhav par koi asar hoga aisaa lagta nahee.
    Mere mitra hain Jogeshwar Garg, Raj. sarkar main mantree bhee rahe hain, shoukia gazal likhte hain unkee do panktian is poore mamle par sateek baithtee hain.

    KAUN BIKA HAI, KISNE BECHA AUR KHARIDA HAI KISNE.
    BAZAROON MAIN GHAR HAIN APNE, GHAR THE JO BAZAR HUE.

    Surendera chaturvedi
    jaipur
    9828151843

    जवाब देंहटाएं